सड़क पर लेटा है
जीभ निकला है उसका
हड्डियाँ दिखती हैं...
वो कुत्ता है या इन्सान
ज़रा पता करो!
~~
जुस्तजु भी नहीं
आरज़ू भी नहीं
ना ख्वाब,
ना दस्तक ख्वाब की
कुछ तो यूँ हुआ आज
अपने क़दमों की आहट पर
मैं हैरान हो गया
रास्ते ख़ुद ही बनाने की ज़िद है उनकी!
~~
रात कुछ ऐसी थी
मैं खामोश ही था
धड्कनें बोलती रह गयी!
~~
जीभ निकला है उसका
हड्डियाँ दिखती हैं...
वो कुत्ता है या इन्सान
ज़रा पता करो!
~~
जुस्तजु भी नहीं
आरज़ू भी नहीं
ना ख्वाब,
ना दस्तक ख्वाब की
यूँ भी तो ज़िन्दगी हसीन हो सकती है!
~~
कुछ तो यूँ हुआ आज
अपने क़दमों की आहट पर
मैं हैरान हो गया
रास्ते ख़ुद ही बनाने की ज़िद है उनकी!
~~
रात कुछ ऐसी थी
मैं खामोश ही था
धड्कनें बोलती रह गयी!
~~
आपके द्वारा यह लाजवाब प्रस्तुति जिसे पढ़ हम सराबोर हुए अब गुलशन-ए-महफ़िल बन आवाम को भी लुभाएगी | आप भी आयें और अपनी पोस्ट को (बृहस्पतिवार, ३० मई, २०१3) को प्रस्तुत होने वाली - मेरी पहली हलचल - की शोभा बढ़ाते देखिये | आपका स्वागत है अपने विचार व्यक्त करने के लिए और अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए | आइये आप, मैं और हम सब मिलकर नए लिंकस को पढ़ें हलचल मचाएं | आभार
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