"साधक और साधना"
बना कर जिसे कविता का आधार
ह्रदय का बारम्बार बढ़ाते हुए भार
स्वयं को ही पीड़ा देकर क्यों करते आराधना?
साधक! और कितनी साधना?
जग-जीवन से कट कर
मृदु यादों में खो कर
जब यादों के विषपान की ही सिर्फ सम्भावना!
साधक! और कितनी साधना?
भक्त की भक्ति पर भगवान् रूठे
लुटा रहा सर्वस्व,फिर भी ना पूछे
फिर ऐसे भगवान् को क्यों भगवान् मानना?
साधक! और कितनी साधना?
साधक कहता है :
अभी बाकी है साधना!
साधना का अंत होता नहीं
आस औ' प्यास साधना नहीं
जीवन का केंद्र बन चुकी नि:स्वार्थ भावना!
अभी बाकी है साधना!
साधक तो मूढ़ होता ही है
अजाने गंतव्य, नाव खेता ही है
मंजिल के बंधन में नहीं प्रेम को है बांधना!
अभी बाकी है साधना!
स्वयं को गौण मान कर
आशाओं को मौन जान कर,
जब प्रेम भक्ति रूप पाती है
तब राधा मीरा बन जाती है!
-2003
तुम कब मेरी थी, मैं कब तुम्हारा था!
अजनबी हम हमेशा से रहते,
राह अलग-अलग, साथ नहीं चलते
अनजाने से साथ अगर आ जाएँ, वो साथ कब हमारा था?
तुम कब मेरी थी, मैं कब तुम्हारा था?
तुम्हारी वेदना कुछ और है, मेरी वेदना कुछ और है
एक दिशा में सोच नहीं सकते
हमारी सोच भी कुछ और है!
अनजाने में एक जैसा सोच भी ले, वो सोच कब हमारी थी?
मैं कब तुम्हारा था, तुम कब मेरी थी?
नहीं थी कोई बात ऐसी जो तुम छुपाना चाहती थी
नहीं थी कोई बात ऐसी जो मैं छुपाना चाहता था
नज़दीक थे बहुत हम दोनों
और अचानक दूरी आ गयी!
अब तुम कहीं और, मैं कहीं और... वो सामिप्य कब हमारा था?
तुम कब मेरी थी, मैं कब तुम्हारा था?
15 .8 .08
वापसी
वो फिर आना अपने घर में
देखना वो दर-ओ-दीवार
कोशिश करना हर दीवार से
कोई पुरानी कहानी याद आ जाए!
वो फिर से आना अपने ही शहर में
फिर से उन तंग रास्तों पर
एक दोस्त के साथ
बेमतलब शामों को टहलना
हर मोड़ पर पुरानी यादों को ताज़ा करना!
वो फिर आना अपने अड्डे पर
वही सिगरेट की दूकान
वही जेनेरटर की आवाज़
वही भेलपुरी का ठेला
और बहुत सारे नए चेहरे
किसी पुराने दोस्त की तलाश में
फिर वहीँ जाना!
वो फिर से देखना स्कूल को
एक ही नज़र में हज़ार चेहरों
को फिर से याद करना
याद करना वो शरारतें-
वो पंखे को मोड़ना,
शीशे को तोड़ना
वो टीचर से झगड़ा
वो गुटबाज़ी
फेल होना एग्ज़ाम में
वो अटेंडेंस के लिए स्कूल जाना
दोस्तों के साथ घर वापस लौटना
कुछ दिनों का प्यार
कुछ खूबसूरत इकरार !
बार-बार फिर यही सोचता हूँ
शायद अपना कुछ भी नहीं रह गया
बस वो लम्हें मेरे अपने हैं
वो यादें मेरी अपनी हैं!
8 .10 .08