कुछ भी होने से पहले

कुछ भी होने से पहले
मैं इंसान हूँ 

कहीं भी नौकरी करने से पहले 
मैं इंसान ही था 
कोई भी कविता लिखने से पहले 
मुझे मालूम था इंसान होना क्या होता है 
किसी भी देश का नागरिक होने से पहले 
मैं इंसान बना था

कहीं भी किसी के साथ अन्याय
एक इंसान के साथ अन्याय है 
मेरी पहचान मुझे अंधा नहीं कर सकती 
एक अन्याय को पहचानने से 
मैं सिरे से खारिज करता हूँ
अंधभक्ति को 
मैं सिरे से खारिज करता हूँ
किसी भी सूरत में किसी का ज़ुल्म

कुछ भी होने से पहले 
मैं इंसान हूँ 
इसलिए कुछ भी होने से पहले 
मुझे बोलना होगा
मुझे बोल कर लोगों को 
याद दिलाना होगा
कि कुछ भी होने से पहले
वो इंसान हैं

22.12.2019

वैज्ञानिक

जब लगता है
मानव सभ्यता ने खोज डाला है
सबकुछ अंतरिक्ष में
तब
एक नया वैज्ञानिक
खोज कर लाता है एक नया तारा
या धूमकेतु कोई

बिल्कुल वैसे
जैसे हमारे बहुत साफ-सुथरे
घर से
माँ खोज निकालती है
ढेर सारा कचरा

[11.10.2019]

कविता पर अधिकार

मेरी प्रेम कविता
अगर तुम्हारी प्रेमिका को
कुछ देर के लिए बहला सके,
तो इसे अपनी बता कर
उसे सुना देना

मेरी कोई भी कविता
अगर किसी को
दोपहर की धूप में
थोड़ा भी सुख दे सके तो
उसे सुना देना

कोई भी कवि
कविता से बड़ा नहीं है
किसी भी कवि का
कोई अधिकार नहीं है
शब्दों पर

शब्दों को आगे-पीछे रख कर
जो वाक्य बनता है
उस पर सबका बराबर अधिकार है

कविता बहुत छोटी है
एक मासूम मुस्कान के सामने

एक कविता अगर किसी को
मुस्कुराहट दे सके
अगर एक कविता किसी को
हिम्मत दे सके
तो कविता ने अपना काम कर लिया है

सुना देना उसे
और उसकी मुस्कान में
कविता के शब्दों को
बिखरते हुए देखना

- 4.9.19

एक टुकड़ा अंधकार

बहुत उजाले से घिर जाने के बाद
मैं एक टुकड़ा अंधकार अपने जेब से निकाल कर
दुनिया के सामने परोस देता हूँ

बहुत उजाले में
बहुत ठीक से नहीं दिखता
थोड़े अंधकार में
लगभग ठीक दिख जाता है

उजाले की ऊष्मा को
अंधकार की शीतलता ढक लेती है
बिल्कुल वैसे जैसे
रेगिस्तान में पानी का मिलना

उजला रंग बहुत साफ़ दिखता है
लेकिन दुनिया में इतना साफ़ कुछ नहीं
जितना अकेले उजला रंग

अंधकार का कालापन
अपने अंदर सब समा लेता है
अंधकार थोड़ा-थोड़ा सेक्युलर है

और लोगों ने अंधकार से डर कर
रात भर अपने-अपने घरों में
रोशनी कर रखी है

अपने हिस्से का अंधकार खोने के बाद
हमारे पास जो बचा है
वो सबको दिख रहा है
सब उसके लिए लड़ रहे हैं

4.9.19

मैं एक नई कविता कहना चाहता हूँ

मैं एक नई कविता कहना चाहता हूँ

वो कविता जिसमें एक नई बात हो
जिसे किसी ने कभी ना कहा हो

वो कविता जिसे कह कर
मैं मुस्कुरा सकूँ
वो कविता
जो मुझे मेरे हिस्से का सुख दे सके
वो कविता जिसके साथ
मैं चल सकूँ
कुछ देर बात कर सकूँ

उस नई कविता से मैं
नई दुनिया की कल्पना कर पाऊँ
उस नई कविता की सुंदरता में
मैं एक नए संसार की
सुंदरता को देख सकूँ

कि जब इंसानी सभ्यता
सारे पेड़ काट चुकी होगी
मेरी इस कविता से
मैं अपने हिस्से का ऑक्सीजन ले पाऊँ

मेरी नई कविता
एक नए भाषा को जन्म दे
कि जिसके बोल सुन कर
पेड़ों पर नए पत्ते उग आएं
मैं बोलूँ 'बादल'
और मैं बादलों से घिर जाऊँ
कि इस भाषा में सिर्फ 'वर्षा'
बोलने भर से बारिश हो जाए

लेकिन,
ये सब मुझे इतना कहने भर से मिल जाता है
कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
और ये बात बिल्कुल भी नई नहीं है

- 4.9.19

दूर शहर में

मैंने अक्सर पाया है
किसी दूर शहर में चलते हुए खुद को

अक्सर पाया है
कि मैं उस समय उस शहर को नहीं
समझ पाता
जितना वहाँ से वापस घर आकर
समझता हूँ -
बिल्कुल एक बीत चुके रिश्ते की तरह,
कि जब तक रिश्ते में रहे
एक दूसरे को समझ नहीं पाए
जितना एक दूसरे से दूर जाने के बाद समझा

एक नए रिश्ते में हम
एक नए शहर में बस रहे होते हैं
नया घर, नई सड़क
नई बातें, नई मुलाक़ातें
नया सबकुछ

जब शहर पुराना हो जाता है
तब हम किसी दूसरे शहर की तरफ बढ़ते हैं
और ये निरन्तर चलता रहता है

कई साल बाद
किसी फोटोग्राफ को देखते हुए
हम सोचते हैं
"उफ, ये शहर कितना अच्छा था"

लेकिन अब उस शहर तक जाने के
सारे रास्ते बंद हो चुके हैं

16.5.19

दादी से कहो एक कहानी सुना दें

दादी से कहो एक कहानी सुना दें

वो कहानी कि जिसमें राजा ना हो कोई रानी ना हो
वो कहानी कि जिसमें दुनिया मोहब्बत से अनजानी ना हो
वो कहानी कि जिसमें सब सिर्फ अंत में खुश ना रहें
वो कहानी कि जिसमें थोड़ा सा हँसे, थोड़ा सा रो लें
वो कहानी कि जिसमें शुरुआत ना हो
वो कहानी कि जिसमें अंत वाली बात ना हो

बात इतनी सी है कि कहानी सारी पुरानी हो गयी
इतना बोला सबने कि हर कहानी बेमानी हो गयी

बूढ़े बाबा से कहना एक गीत सुना दें

वो गीत ऐसा कि सर्द सुबह में धूप थोड़ी दे दे
वो गीत ऐसा कि कोई फिर ख़ुदा को ना खोजे
वो गीत ऐसा कि कोई रोता ना हो
वो गीत ऐसा कि कोई भूख से सोता ना हो
वो गीत ऐसा कि ग़ज़ल भी, कविता भी
वो गीत ऐसा कि सबकुछ भी, कुछ ना भी

बात इतनी सी है कि गीत सारे खो गए हैं
जिनके पास थे वो सब नशे में सो गए हैं

साथी से कहना कुछ देर बस सुन ले

वो सुनना ऐसा कि जब तुम कुछ ना बोलो
वो सुनना ऐसा कि जब तुम ज़ुबाँ भी ना खोलो
वो सुनना ऐसा कि भीड़ में भी सिर्फ एक शब्द सुना
वो सुनना ऐसा कि तेरी अधपकी बातों से सब बुना
वो सुनना ऐसा कि खेत में फसल का लहलहाना
वो सुनना ऐसा कि बादलों का बस बरस जाना

बात इतनी सी है कि साथी, अब कोई सुनता नहीं
खेत की पुकार अब बादल समझता भी नहीं

दादी-बाबा से मिल लेंगे
एक कहानी सुन लेंगे, एक गीत सुन लेंगे
फिर, हम व्यस्त हो जायेंगे जीवन जीने में
सिर्फ बोलेंगे, खूब बोलेंगे, नहीं कुछ सुनेंगे!

6.2.19