tag:blogger.com,1999:blog-64395213355749247352024-03-06T13:50:58.108+05:30कथा-कहानी-उपन्यास हूँ मैं, कविता हूँ मैं!एहसास हूँ, एहसास विहीन हूँ... स्वास हूँ, नि:स्वास हूँ...Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.comBlogger178125tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-4817150273055579162023-11-28T10:16:00.001+05:302023-11-28T10:16:42.050+05:30एक प्रेम ऐसा भी<p dir="ltr">असंख्य सुंदर प्रेम कहानियों के बीच </p><p dir="ltr">उन्होंने आम इंसानों वाला प्रेम किया </p><p dir="ltr">सिनेमा की तरह सुंदर प्रेम कहानियों को देखते हुए</p><p dir="ltr">वो व्यस्त रहे जीवन की आपाधापी में</p><br><p dir="ltr">उनके प्रेम में सबसे ज़रूरी बातें घर खर्चे की होती </p><p dir="ltr">उन्हें हर बार मालूम रहता कि प्याज़ का दाम बढ़ा है</p><p dir="ltr">वो जानते हर बार नहीं जा सकते घूमने पहाड़ों पर </p><p dir="ltr">जीवन के बेहद औसत दिक्कतों को साथ झेला </p><br><p dir="ltr">सिनेमा की सुंदर प्रेम कहानियों को </p><p dir="ltr">देखते रहे पूरी निष्ठा से </p><p dir="ltr">कि जब-जब पर्दे पर हीरोइन का दिल टूटा </p><p dir="ltr">उनका दिल भी थोड़ा टूट सा गया</p><p dir="ltr">कि जब-जब प्रेम सफल हुआ पर्दे पर </p><p dir="ltr">उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया</p><p dir="ltr">और मुस्कुरा दिया अंधेरे में </p><br><p dir="ltr">बिना किसी नाटकीयता के जीवन बीत गया </p><p dir="ltr">और बुढ़ापे के दिनों में </p><p dir="ltr">एक दूसरे के अगल-बगल ऊँघते पाये गये दोनों </p><br><p dir="ltr">उनके प्रेम संबंध पर कोई सिनेमा नहीं बना </p><p dir="ltr">क्योंकि सिनेमा के विपरीत </p><p dir="ltr">उनके जीवन का संघर्ष कभी ख़त्म नहीं हुआ </p><br><p dir="ltr">आम इंसानों वाले प्रेम में, पूरा जीवन संघर्ष है </p><p dir="ltr">बस प्रेम संघर्ष नहीं -</p><p dir="ltr">प्रेम सरल है… </p><br><p dir="ltr">10.11.23 </p>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-36985823113663540632023-11-28T10:00:00.001+05:302023-11-28T10:00:49.755+05:30हमारे आसपास <p dir="ltr">प्रेम कविता लिखना </p><p dir="ltr">प्रेम करने से बहुत आसान है</p><p dir="ltr">इसलिए हमारे आसपास </p><p dir="ltr">अनगिनत प्रेम कहानियाँ पसरी हुई हैं</p><br><p dir="ltr">बहुत आसान है</p><p dir="ltr">दूसरे के दुःख को देखकर </p><p dir="ltr">चार महान शब्द गढ़ देना </p><p dir="ltr">इसलिए हमारे आसपास </p><p dir="ltr">महान लोगों की भीड़ है</p><br><p dir="ltr">ठीक युद्ध के बीच बीता बचपन</p><p dir="ltr">कविता नही लिखता</p><p dir="ltr">इसलिए हमारे आसपास</p><p dir="ltr">उसके दुःख-दर्द के नाम पर </p><p dir="ltr">फूहड़ कहानियाँ पायी जाती हैं</p><br><p dir="ltr">ओह, कितना सुख है हमारे आसपास</p><br><p dir="ltr">हमारा 'आसपास'</p><p dir="ltr">सबका 'आसपास' नहीं होता</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">22.9.23 </p>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-17126011057115967152023-07-05T22:20:00.001+05:302023-07-05T22:20:04.968+05:30बचाना<div>प्रेम में रह कर मैंने जाना,</div><div>मेरी लड़ाई दुनिया बचाने की नहीं है</div><div><br></div><div>मेरी पूरी कोशिश इतनी भर है</div><div>कि मैं तुम्हारे लिए इस दुनिया में</div><div>एक ऐसा कोना बचा लूँ</div><div>जहाँ पूरी दुनिया अपनी लड़ाइयों के बाद</div><div>बच कर आना चाहती हो</div><div><br></div><div>(ये प्रेम कविता उसी कोने में बची रहेगी)</div><div><br></div><div>- 25.6.23</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-45935093459692656622022-05-03T11:18:00.001+05:302022-05-03T11:18:33.719+05:30पटना<div>मुझ में इतना बसा हुआ है मेरा घर</div><div>कि कोई देखे तो दिखे पूरा शहर</div><div><br></div><div>मुझे लगता किसी ने नाम मेरा पूछा</div><div>जो पूछे बिहार की राजधानी किधर?</div><div><br></div><div>एक शोर जो मैं सुनता हूँ ट्रैफिक की</div><div>ये ज़रूर कंकड़बाग होगा मेरे अंदर</div><div><br></div><div>अब दिखे तो सिर्फ फ्लाईओवर दिखे</div><div>पहले दीघा में आते थे आम नज़र </div><div><br></div><div>एक मोहल्ला जहाँ रहता है बचपन</div><div>दूर से दिखता है वो पटेल नगर</div><div><br></div><div>2.5.22 </div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-68142277656986856162022-04-14T12:42:00.001+05:302022-04-14T12:42:52.330+05:30अकेलेपन की कविता<div>अकेले रहने में</div><div>चुप रहता हूँ</div><div><br></div><div>कोई साथ रहता है तो बोलता हूँ</div><div><br></div><div>अकेले रहने में</div><div>कभी कभी खुद से बात करता हूँ</div><div><br></div><div>किसी और के सामने खुद से बात करूँ </div><div>तो लोग पागल बोलेंगे</div><div><br></div><div>लेकिन अकेले रहने में खुद को </div><div>पागल नहीं बोलता हूँ</div><div><br></div><div>मैं बोलता हूँ कि</div><div>अब मुझे खाना खा लेना चाहिए</div><div>अब कुछ पढ़ लो</div><div>अब सोने का समय हो गया</div><div><br></div><div>मैं कुछ देर अपने बचपन से भी बात करता हूँ</div><div><br></div><div>किसी सिनेमा के पात्र की तरह</div><div>मुझे मैं दिखता हूँ दूर से</div><div><br></div><div>सिनेमा के पात्र को आप कुछ भी बोलो</div><div>वो सुन नहीं सकता</div><div><br></div><div>मैं भी मैं को सुन नहीं सकता</div><div><br></div><div>अकेले रहने में बहुत से पात्र</div><div>आपके साथ रहते हैं</div><div><br></div><div>ये किसी को बताओ तो वो नहीं मानेगा</div><div>इसलिए ये सिर्फ उन पात्रों को ही बताता हूँ</div><div>जो मेरी बात नहीं सुन सकते।</div><div><br></div><div>3.3.22</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-11142987883559897992022-04-14T12:40:00.001+05:302022-04-14T12:40:21.306+05:30प्रेम कविता<div>पूरे संगीत को समझने के लिए</div><div>पूरे संगीत को सुनने की </div><div>आवश्यकता नहीं होती</div><div><br></div><div>थोड़े से सुंदर संगीत से भी</div><div>पूरे संगीत को समझ सकते हैं</div><div><br></div><div>पूरे प्रेम को समझने के लिए</div><div>बहुत प्रेम की आवश्यकता नहीं होती</div><div><br></div><div>थोड़े से जीवन में </div><div>थोड़ा सा सुंदर प्रेम भी</div><div>सम्पूर्ण प्रेम है</div><div><br></div><div>8.3.22</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-11439243890638608302022-04-14T12:34:00.001+05:302022-04-14T12:34:40.672+05:30कविता और जीवन <div>जीवन जीने की कोशिश में<br></div><div>जीवन जीता हूँ</div><div>जैसे </div><div>कविता लिखने की कोशिश में</div><div>कविता</div><div><br></div><div>कविता सुंदर तब होती है</div><div>जब कोशिश नहीं करता </div><div>जैसे </div><div>जीवन</div><div><br></div><div>27.3.22 </div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-76737365816767770302022-02-27T02:27:00.001+05:302022-02-27T02:27:52.992+05:30समय लगता है<div>जीवन भर</div><div>हम सिर्फ एक रास्ते पर नहीं होते</div><div>एक साथ सैकड़ों सड़क पर</div><div>हमारे सैकड़ों पैर चल रहे होते हैं</div><div><br></div><div>नहीं होता सिर्फ एक गंतव्य</div><div>सैकड़ों गंतव्यों को </div><div>हम अपनी सैकड़ों आंखों से</div><div>लगातार देखते हैं</div><div><br></div><div>नहीं होता किसी का सिर्फ एक साथी</div><div>कई संबंध</div><div>हमारे साथ चलते हैं जीवन भर</div><div><br></div><div>हम बहुत कोशिश भी कर लें</div><div>लेकिन हर सफ़र में</div><div>तय समय लगता है</div><div><br></div><div>मैंने एक शब्द कहा </div><div>उसको तुम तक पहुँचने में </div><div>एक तय समय लगेगा</div><div><br></div><div>दूर ग्रह पर</div><div>समय के माने अलग हैं,</div><div>पृथ्वी पर अलग</div><div><br></div><div>मेरे अनुमान से</div><div>मुझे तुम तक पहुँचने में</div><div>कई पैरों का सफ़र करना है</div><div><br></div><div>ऐसे ही पृथ्वी पर समय बीत जाएगा</div><div><br></div><div>मैं एक ऐसा ग्रह खोज रहा हूँ</div><div>जहाँ सबकुछ धीमी गति से बीते</div><div><br></div><div>मैं अपने सारे संबंधों को</div><div>वहाँ ले जाना चाहता हूँ</div><div><br></div><div>पृथ्वी पर तय समय में</div><div>कुछ भी नहीं कर पाया</div><div><br></div><div>बस एक काम बचा है -</div><div>धीमी गति वाले ग्रह को</div><div>जल्दी जल्दी खोजना है</div><div><br></div><div>27.9.21 </div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-79892122052115859612022-02-27T02:06:00.001+05:302022-02-27T02:06:03.436+05:30कविता सरीखा प्रेम<div>मेरी यादों में</div><div>तुम एक कविता जैसी ही हो</div><div><br></div><div>मैंने तुम्हें धोखा दिया</div><div>लेकिन तुमने मुझे सहर्ष स्वीकारा</div><div>- तुमने मुझ में एक संभावना देखी</div><div><br></div><div>कविता संभावनाओं को </div><div>विकसित करती है</div><div>तुमने प्रेम में मुझे</div><div>पाला पोसा है</div><div><br></div><div>एक सुंदर कविता वो है</div><div>जिसे पढ़ कर</div><div>एक कविता लिखने का मन करे</div><div><br></div><div>कविता अपना वंश बढ़ाना </div><div>जानती है</div><div>- एक जैसे मन को जोड़ती है</div><div><br></div><div>हम ऐसे जुड़े </div><div>जैसे कविता की दो पंक्तियाँ </div><div>किसी अदृश्य ताकत से जुड़ती हैं</div><div><br></div><div>25.1.22</div><div><br></div><div><br></div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-84818529860419823402021-09-14T00:57:00.001+05:302021-09-14T00:57:27.729+05:30दुनियादारी <div>उदास शहर में तेरा हँसना बहुत ज़रूरी है</div><div>खुश होना अलग है, दिखना बहुत ज़रूरी है</div><div><br></div><div>खुद को ख़ुदा मानते, शहर खरीदते लोग</div><div>बस इनसे बच के रहना बहुत ज़रूरी है</div><div><br></div><div>कुछ खास नहीं है लेकिन, फिर भी सुन लो</div><div>ज़िंदा दिल के साथ जीना बहुत ज़रूरी है</div><div><br></div><div>8.9.21 </div><div><br></div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-12644983544433063172021-08-26T13:53:00.001+05:302021-08-26T13:53:21.064+05:30तुम्हारे जाने के बादतुम्हारे जाने के बाद<div>घर<br />'तुम कभी रहती थी'<br />वाली जगह में बदल गया<br /><br />तुम्हारे जाने के बाद <br />किताबें <br />तुम जैसे रख कर गयी थी<br />वैसे ही रहने की कोशिशें करती रहीं <br /><br />तुम्हारे जाने के बाद <br />कुर्सियाँ <br />अपनी जगह से <br />डेढ़ फुट आगे-पीछे <br />रहने लगीं<br /><br />तुम्हारे जाने के बाद <br />सबकुछ <br />पहले कैसे रहते थे <br />की याद के साथ रहने लगे <br /><br />(मैं भी)<br /><br />11.8.21 </div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-12789710201922429212021-02-02T03:11:00.001+05:302021-02-02T03:11:03.067+05:30हम कविता क्यों लिखते हैं<div>दुनिया में करोड़ों कविताएं<br></div><div>लिखी जा चुकी हैं</div><div><br></div><div>फिर भी जब मैं</div><div>अपने लिए खोजता हूँ</div><div>एक कविता</div><div>तो खाली लगती हैं </div><div>सभी कवियों की बातें</div><div><br></div><div>फिर मैं एक कविता लिखता हूँ<br></div><div><br></div><div>30.1.21</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-33601677748162547372021-01-04T01:05:00.001+05:302021-01-04T01:05:50.777+05:30गुरुत्वाकर्षण<div>धरती के पास अपना गुरुत्वाकर्षण होता है</div><div>वैसे ही जैसे सूरज में है</div><div><br></div><div>जुपिटर जैसा गुरुत्वाकर्षण </div><div>दूर तारे के किसी ग्रह में भी होता है</div><div><br></div><div>सबके पास अपना अपना</div><div>थोड़ा कम थोड़ा ज़्यादा होता है</div><div>गुरुत्वाकर्षण</div><div><br></div><div>मैं जीवन की कल्पना नहीं कर पाता</div><div>बिना गुरुत्वाकर्षण को सोचे हुए</div><div><br></div><div>तुम्हारे गुरुत्वाकर्षण का असर इतना है</div><div>कि किसी ग्रह की तरह </div><div>तुम्हारे किनारे ही जीवन भर चलता रहा हूँ</div><div>तुम्हारी परिधि में जीवन की कल्पना करते हुए</div><div>जीवन जी रहा हूँ</div><div><br></div><div>तुम्हें खोज लिया किसी ने</div><div>अपनी टेलिस्कोप से</div><div>लेकिन अभी किसी वैज्ञानिक ने नहीं खोजा है</div><div>मुझ छोटे ग्रह को</div><div>अभी किसी को पता नहीं कि </div><div>कई प्रकाश वर्ष दूर एक ग्रह पर जीवन है</div><div>जिसके तारे तुम हो</div><div>और जिसके गुरुत्वाकर्षण से </div><div>मेरे पूरे शरीर में एक सभ्यता पल रही है</div><div><br></div><div>3.1.20</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-69270835222776409772020-10-24T21:51:00.001+05:302020-10-24T21:55:04.620+05:30रोज़ रोज़ का जीवन<div><span style="letter-spacing: 0.2px;">मैं रोज़ एक उपन्यास लिखना शुरू करता हूँ</span></div><div>और रोज़ नहीं लिख पाता</div><div><br></div><div>रोज़ ही एक कहानी कहना चाहता हूँ</div><div>रोज़ ही कहानी नहीं कह पाता</div><div><br></div><div>रोज़ कविता लिखने की कोशिश में</div><div>रोज़ कविता नहीं लिख पाता</div><div><br></div><div>कविता कहानी उपन्यास </div><div>जीवन जीने सरीखा है</div><div><br></div><div>रोज़ जीने से बेहतर होता कि </div><div>हम कुछ दिन जीते</div><div><br></div><div>सार्थक दिन...</div><div><br></div><div>जिस दिन कविता कह पाया </div><div>बस उस दिन को जीवन माना गया</div><div><br></div><div>24.10.2020</div><div><br></div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-14460080207367874302020-10-19T10:38:00.001+05:302021-01-04T01:07:32.095+05:30मैं धीरे धीरे बूढ़ा होता हूँ<div>मैं धीरे धीरे बूढ़ा होता हूँ</div><div><br></div><div>मैं धीरे धीरे ही ये देख रहा हूँ</div><div>जीवन जीने की प्रक्रिया में </div><div>अचानक कुछ नहीं होता</div><div>धीरे धीरे ही चेहरे पर झुर्रियाँ आती हैं</div><div>धीरे धीरे ही दाढ़ी सफ़ेद होती है</div><div>धीरे धीरे ही कमर का दर्द बढ़ता है</div><div>धीरे धीरे ही स्मृतियाँ धुंधली होती हैं</div><div>धीरे धीरे ही बचपन की यादें प्रबल होती हैं</div><div><br></div><div>जैसे प्रेम अचानक नहीं होता</div><div>वैसे ही अचानक कोई बूढ़ा नहीं होता</div><div><br></div><div>प्रेम के साथ बूढ़ा होना सुखद है</div><div><br></div><div>पूरे साल में </div><div>कोई मौसम अचानक नहीं आता</div><div>धीरे धीरे ही सर्दी आती है</div><div>धीरे धीरे ही गर्मी</div><div>एक दिन तेज़ बरसात आती है</div><div>पर उससे पहले कई दिन </div><div>धीमी गति पर बूंदें गिरती हैं</div><div><br></div><div>मैंने एक टाइम-लैप्स वीडियो बनाया</div><div>और देखा कि सबकुछ जल्दी बीत गया</div><div><br></div><div>अंतिम क्षण में जीवन को टाइम-लैप्स में देख सकें</div><div>तो क्या देखेंगे?</div><div>धीरे धीरे की जगह जल्दी जल्दी में सब दिखेगा</div><div>और जल्दी जल्दी में कुछ समझ नहीं आएगा</div><div>जहाँ कई साल बैठे रहे </div><div>उस जगह से कुछ सेकंड में उठ जाएंगे</div><div>कितना दुखद होगा</div><div>अंतिम क्षण में पूरे उम्र के प्रेम को </div><div>कुछ सेकंड में देखना</div><div><br></div><div>25.9.20</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-76790926364677217832020-09-05T13:35:00.001+05:302020-09-05T13:35:12.053+05:30खालीपन<div><span style="letter-spacing: 0.2px;">"मैं खाली हूँ" कहना आसान है,</span><br></div><div>आसान नहीं "खाली होना"</div><div><br></div><div>कई सालों की काई</div><div>जमी है दिमाग में</div><div><br></div><div>भरा हुआ है पूरा शरीर</div><div>भाषाओं से -</div><div>शब्द भाषा</div><div>मूक भाषा </div><div><br></div><div>भरा हुआ है पूरा शरीर </div><div>आकांक्षाओं से -</div><div>खाली होने की आकांक्षा</div><div>अंतिम आकांक्षा है</div><div><br></div><div>खाली होने में समय लगता है </div><div>बूंद बूंद निचोड़े जाने के बाद</div><div>आदमी खाली होता है</div><div><br></div><div>उससे पहले आदमी भरा हुआ है</div><div><br></div><div>थोड़ा थोड़ा खाली होते रहना </div><div>जीवन की प्रक्रिया है</div><div><br></div><div>खालीपन मोक्ष है -</div><div>मोक्ष सबको नहीं मिलती </div><div>मृत्यु से पहले।</div><div><br></div><div>3.9.20</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-63422694307650825592020-02-18T13:20:00.001+05:302020-02-18T13:20:34.450+05:30कुछ लेकर वापस थोड़े ही जाना है<div>कुछ लेकर वापस थोड़े ही जाना है</div><div>ऐ दुनिया, सारा हिसाब चुकाना है </div><div><br></div><div>तू कोई आखरी इंसान तो नहीं है</div><div>तेरे बाद भी किसी को आना है</div><div><br></div><div>अच्छा भी याद है, बुरा भी याद है</div><div>जिसने जो दिया वापस लौटाना है</div><div><br></div><div>मैं सच देख लेता हूँ सबकी आंखों में</div><div>ये झूठी बात है कि झूठा ज़माना है</div><div><br></div><div>कोई अपना दिल खोल कर लिखता है</div><div>और दुनिया कहे 'ये तो अफसाना है'</div><div><br></div><div>17.2.20</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-52642390644369590742019-12-22T21:41:00.001+05:302019-12-22T21:41:10.383+05:30कुछ भी होने से पहले<div>कुछ भी होने से पहले</div><div>मैं इंसान हूँ </div><div><br></div><div>कहीं भी नौकरी करने से पहले </div><div>मैं इंसान ही था </div><div>कोई भी कविता लिखने से पहले </div><div>मुझे मालूम था इंसान होना क्या होता है </div><div>किसी भी देश का नागरिक होने से पहले </div><div>मैं इंसान बना था</div><div><br></div><div>कहीं भी किसी के साथ अन्याय</div><div>एक इंसान के साथ अन्याय है </div><div>मेरी पहचान मुझे अंधा नहीं कर सकती </div><div>एक अन्याय को पहचानने से </div><div>मैं सिरे से खारिज करता हूँ</div><div>अंधभक्ति को </div><div>मैं सिरे से खारिज करता हूँ</div><div>किसी भी सूरत में किसी का ज़ुल्म</div><div><br></div><div>कुछ भी होने से पहले </div><div>मैं इंसान हूँ </div><div>इसलिए कुछ भी होने से पहले </div><div>मुझे बोलना होगा</div><div>मुझे बोल कर लोगों को </div><div>याद दिलाना होगा</div><div>कि कुछ भी होने से पहले</div><div>वो इंसान हैं</div><div><br></div><div>22.12.2019</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-84099752860408106622019-10-26T04:40:00.001+05:302019-10-26T04:40:06.351+05:30वैज्ञानिक<div>जब लगता है</div><div>मानव सभ्यता ने खोज डाला है</div><div>सबकुछ अंतरिक्ष में</div><div>तब</div><div>एक नया वैज्ञानिक</div><div>खोज कर लाता है एक नया तारा</div><div>या धूमकेतु कोई</div><div><br></div><div>बिल्कुल वैसे</div><div>जैसे हमारे बहुत साफ-सुथरे</div><div>घर से</div><div>माँ खोज निकालती है</div><div>ढेर सारा कचरा</div><div><br></div><div>[11.10.2019]</div>Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-47495330721957659442019-09-06T19:49:00.001+05:302019-09-06T19:49:42.039+05:30कविता पर अधिकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरी प्रेम कविता<br />अगर तुम्हारी प्रेमिका को <br />कुछ देर के लिए बहला सके,<br />तो इसे अपनी बता कर<br />उसे सुना देना<br /><br />मेरी कोई भी कविता<br />अगर किसी को<br />दोपहर की धूप में <br />थोड़ा भी सुख दे सके तो<br />उसे सुना देना <br /><br />कोई भी कवि<br />कविता से बड़ा नहीं है<br />किसी भी कवि का<br />कोई अधिकार नहीं है<br />शब्दों पर<br /><br />शब्दों को आगे-पीछे रख कर<br />जो वाक्य बनता है<br />उस पर सबका बराबर अधिकार है<br /><br />कविता बहुत छोटी है<br />एक मासूम मुस्कान के सामने <br /><br />एक कविता अगर किसी को<br />मुस्कुराहट दे सके<br />अगर एक कविता किसी को <br />हिम्मत दे सके <br />तो कविता ने अपना काम कर लिया है <br /><br />सुना देना उसे<br />और उसकी मुस्कान में<br />कविता के शब्दों को<br />बिखरते हुए देखना <br /><br />- 4.9.19 </div>
Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-13778419735249446892019-09-06T19:45:00.000+05:302019-09-06T19:47:05.793+05:30एक टुकड़ा अंधकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बहुत उजाले से घिर जाने के बाद<br />मैं एक टुकड़ा अंधकार अपने जेब से निकाल कर<br />दुनिया के सामने परोस देता हूँ<br /><br />बहुत उजाले में <br />बहुत ठीक से नहीं दिखता<br />थोड़े अंधकार में<br />लगभग ठीक दिख जाता है<br /><br />उजाले की ऊष्मा को<br />अंधकार की शीतलता ढक लेती है<br />बिल्कुल वैसे जैसे<br />रेगिस्तान में पानी का मिलना<br /><br />उजला रंग बहुत साफ़ दिखता है<br />लेकिन दुनिया में इतना साफ़ कुछ नहीं <br />जितना अकेले उजला रंग <br /><br />अंधकार का कालापन<br />अपने अंदर सब समा लेता है<br />अंधकार थोड़ा-थोड़ा सेक्युलर है<br /><br />और लोगों ने अंधकार से डर कर <br />रात भर अपने-अपने घरों में <br />रोशनी कर रखी है <br /><br />अपने हिस्से का अंधकार खोने के बाद <br />हमारे पास जो बचा है <br />वो सबको दिख रहा है<br />सब उसके लिए लड़ रहे हैं <br /><br />4.9.19</div>
Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-57207249764362106392019-09-06T19:34:00.003+05:302019-09-06T19:47:20.852+05:30मैं एक नई कविता कहना चाहता हूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं एक नई कविता कहना चाहता हूँ<br />
<br />
वो कविता जिसमें एक नई बात हो<br />
जिसे किसी ने कभी ना कहा हो<br />
<br />
वो कविता जिसे कह कर <br />
मैं मुस्कुरा सकूँ <br />
वो कविता <br />
जो मुझे मेरे हिस्से का सुख दे सके <br />
वो कविता जिसके साथ<br />
मैं चल सकूँ<br />
कुछ देर बात कर सकूँ<br />
<br />
उस नई कविता से मैं <br />
नई दुनिया की कल्पना कर पाऊँ<br />
उस नई कविता की सुंदरता में <br />
मैं एक नए संसार की<br />
सुंदरता को देख सकूँ <br />
<br />
कि जब इंसानी सभ्यता <br />
सारे पेड़ काट चुकी होगी<br />
मेरी इस कविता से <br />
मैं अपने हिस्से का ऑक्सीजन ले पाऊँ<br />
<br />
मेरी नई कविता<br />
एक नए भाषा को जन्म दे <br />
कि जिसके बोल सुन कर <br />
पेड़ों पर नए पत्ते उग आएं<br />
मैं बोलूँ 'बादल'<br />
और मैं बादलों से घिर जाऊँ<br />
कि इस भाषा में सिर्फ 'वर्षा'<br />
बोलने भर से बारिश हो जाए <br />
<br />
लेकिन,<br />
ये सब मुझे इतना कहने भर से मिल जाता है <br />
कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ <br />
और ये बात बिल्कुल भी नई नहीं है<br />
<br />
- 4.9.19 </div>
Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-20721779805856031302019-05-16T19:15:00.001+05:302019-05-16T19:15:04.874+05:30दूर शहर में<p dir="ltr">मैंने अक्सर पाया है <br>
किसी दूर शहर में चलते हुए खुद को</p>
<p dir="ltr">अक्सर पाया है <br>
कि मैं उस समय उस शहर को नहीं <br>
समझ पाता <br>
जितना वहाँ से वापस घर आकर <br>
समझता हूँ -<br>
बिल्कुल एक बीत चुके रिश्ते की तरह,<br>
कि जब तक रिश्ते में रहे<br>
एक दूसरे को समझ नहीं पाए <br>
जितना एक दूसरे से दूर जाने के बाद समझा </p>
<p dir="ltr">एक नए रिश्ते में हम<br>
एक नए शहर में बस रहे होते हैं <br>
नया घर, नई सड़क<br>
नई बातें, नई मुलाक़ातें<br>
नया सबकुछ </p>
<p dir="ltr">जब शहर पुराना हो जाता है <br>
तब हम किसी दूसरे शहर की तरफ बढ़ते हैं <br>
और ये निरन्तर चलता रहता है</p>
<p dir="ltr">कई साल बाद <br>
किसी फोटोग्राफ को देखते हुए <br>
हम सोचते हैं<br>
"उफ, ये शहर कितना अच्छा था"</p>
<p dir="ltr">लेकिन अब उस शहर तक जाने के <br>
सारे रास्ते बंद हो चुके हैं </p>
<p dir="ltr">16.5.19 </p>
Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-16734596604752705612019-02-06T08:00:00.001+05:302019-02-06T10:43:52.606+05:30दादी से कहो एक कहानी सुना दें <p dir="ltr">दादी से कहो एक कहानी सुना दें</p>
<p dir="ltr">वो कहानी कि जिसमें राजा ना हो कोई रानी ना हो <br>
वो कहानी कि जिसमें दुनिया मोहब्बत से अनजानी ना हो <br>
वो कहानी कि जिसमें सब सिर्फ अंत में खुश ना रहें<br>
वो कहानी कि जिसमें थोड़ा सा हँसे, थोड़ा सा रो लें <br>
वो कहानी कि जिसमें शुरुआत ना हो <br>
वो कहानी कि जिसमें अंत वाली बात ना हो </p>
<p dir="ltr">बात इतनी सी है कि कहानी सारी पुरानी हो गयी<br>
इतना बोला सबने कि हर कहानी बेमानी हो गयी </p>
<p dir="ltr">बूढ़े बाबा से कहना एक गीत सुना दें</p>
<p dir="ltr">वो गीत ऐसा कि सर्द सुबह में धूप थोड़ी दे दे <br>
वो गीत ऐसा कि कोई फिर ख़ुदा को ना खोजे <br>
वो गीत ऐसा कि कोई रोता ना हो <br>
वो गीत ऐसा कि कोई भूख से सोता ना हो <br>
वो गीत ऐसा कि ग़ज़ल भी, कविता भी <br>
वो गीत ऐसा कि सबकुछ भी, कुछ ना भी </p>
<p dir="ltr">बात इतनी सी है कि गीत सारे खो गए हैं<br>
जिनके पास थे वो सब नशे में सो गए हैं </p>
<p dir="ltr">साथी से कहना कुछ देर बस सुन ले </p>
<p dir="ltr">वो सुनना ऐसा कि जब तुम कुछ ना बोलो<br>
वो सुनना ऐसा कि जब तुम ज़ुबाँ भी ना खोलो <br>
वो सुनना ऐसा कि भीड़ में भी सिर्फ एक शब्द सुना <br>
वो सुनना ऐसा कि तेरी अधपकी बातों से सब बुना <br>
वो सुनना ऐसा कि खेत में फसल का लहलहाना <br>
वो सुनना ऐसा कि बादलों का बस बरस जाना </p>
<p dir="ltr">बात इतनी सी है कि साथी, अब कोई सुनता नहीं<br>
खेत की पुकार अब बादल समझता भी नहीं </p>
<p dir="ltr">दादी-बाबा से मिल लेंगे<br>
एक कहानी सुन लेंगे, एक गीत सुन लेंगे <br>
फिर, हम व्यस्त हो जायेंगे जीवन जीने में <br>
सिर्फ बोलेंगे, खूब बोलेंगे, नहीं कुछ सुनेंगे!</p>
<p dir="ltr">6.2.19 </p>
Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6439521335574924735.post-51393820655626197682018-11-01T15:26:00.001+05:302018-11-02T03:31:02.622+05:30आस्था<p dir="ltr">ईश्वर के बारे में सोचते हुए <br>
मुझे शेक्सपियर की याद आती है </p>
<p dir="ltr">या अठारवीं सदी के किसी कवि की </p>
<p dir="ltr">और खुद को मैं एक अक्षर मात्र सा पाता हूँ <br>
जिसे ईश्वर ने मरने से पहले लिखा हो </p>
<p dir="ltr">शेक्सपीयर भी मरने के बाद जीवित है <br>
जैसे ईश्वर हममें</p>
<p dir="ltr">लेकिन अंत में हम सिर्फ अक्षर मात्र हैं<br>
और किताब में शब्द बहुत <u>हैं</u></p>
<p dir="ltr">1.11.18</p>
Nihal Parasharhttp://www.blogger.com/profile/01787925237104432556noreply@blogger.com0