एक दिन

सोचता हूँ एक दिन
उसके साथ गुज़ार लूँ...

उसकी भी कुछ बातें सुन लूँ ,
सुना दूँ कुछ अनकही बातें उसे

झगड़ लूँ, लड़ लूँ,
दो लम्हा प्यार कर लूँ

बहुत दिन हुए उससे बात नहीं की
दूरियाँ बढ़ गयी हैं दरमयां,

कुछ दूरियाँ मिटा लूँ

सोचता हूँ
एक दिन
अपने रूह के साथ गुज़ार लूँ !

देख लेता हूँ YouTube पर तुम्हे

अब तो देख लेता हूँ
YouTube पर उसे

देख लेता हूँ अंकल स्क्रूज को
जब मन करता है,
मुलाक़ात हो जाती है
अलादीन तुमसे भी

ऐसा लगता है
घड़ी की बाहें मुड़ गयी हैं
उल्टी दिशा में

लेकिन चाह कर भी
वो मासूमियत ला नहीं पाता
जिसके साथ मुलाक़ात होती थी तुमसे
ब्लैक एंड वाईट टीवी पर

मुझे तब भी तुम
बहुत रंगीन नज़र आते थे...

सन्डे के सन्डे
सुबह सुबह
देखता था तुम्हे

इंतज़ार के बाद आते थे तुम!

कभी कभार यूँ भी होता था
गुल हो जाती बत्ती,
फिर भी बैठा करते थे
अपनी रंगीन सी ब्लैक एंड वाईट टीवी के सामने

अब तो देख लेता हूँ
YouTube पर तुम्हे...

फिर भी...

चाँद का मुँह टेढ़ा है!

चाँद का मुँह टेढ़ा है!
-मुक्तिबोध

कुछ टेढ़ा सा तो मुँह है चाँद का!

कभी रहा होगा वो भी
एक हिस्सा इस जहाँ का

ऊब सा गया होगा
जैसे ऊब गए हैं
दो -चार लोग यहाँ और
हज़ार -दस हज़ार
लाख -कड़ोड़ लोग यहाँ और

चला गया छोड़ कर
चाँद जहाँ को

दूर बैठा है
मुँह टेढ़ा है

आराम से सो रहा है
आज कल चाँद
शायद देखना पसंद नहीं उसे
दुनिया को

ऊब गया है!

जब कभी दिखते होंगे हम उसे
मुस्कुराता होगा
हँसता होगा पागलों की तरह
कर लेता होगा मुँह टेढ़ा

चला जाऊंगा मैं भी कभी चाँद पर
जल्द ही कदम रखूँगा चाँद पर
कर लूँगा मैं भी मुँह टेढ़ा

हसुँगा पागलों की तरह मैं भी
देख कर रेंगते हुए कीड़ों को यहाँ

पर मेरी हँसी सुनेगा कौन वहाँ?

तुमसे कुछ कहना था

तुम्हे ख़बर भी ना कर सका,
कि तुम्हारी हर मुस्कान के पीछे
दुआ मेरी थी

तुम्हे ख़बर भी ना कर सका
कि हर लम्हात जो ख़ुशी
का एहसास हुआ था तुम्हे
वो खुदा ने मंज़ूर
की थी दुआ में मेरी

तुम्हे ख़बर भी ना कर सका,
कि मैं लम्हा लम्हा
तुम्हारे पास ही था-
शाम की ठंडी पुरवाई में
जब तुम्हारे गालों को
हवा हौले से छू कर निकल जाती थी,
तब तुम आँखों को मीच लेते थे
जब तुम मुस्कुराते थे
नयी फिल्मों के गीत गुनगुनाते थे
सुबह उठ कर फिर से सो जाते थे
जब थक जाते थे
और नींद आ जाती थी तुरंत
गिरते ही पलंग पर...

उस नींद में सपने
मैं ही तो दिखाता था

कभी तो देखा होगा,

कभी तो महसूस किया होगा...

मासूम सा रिश्ता

आजकल सुबह सुबह
मुलाक़ात हो जाती है
उस शैतान से फ़रिश्ते से!

ऐसा होता नहीं कभी की मुझे जाने दे
घर से वो बिना कुछ सवाल किये
पूछ लेता है बार बार
"कहाँ जा लहे हो ?
क्यों जा लहे हो ?
हाथ में क्या है तुम्हाले?
ये ताला क्यों लगा लहे हो ?"
कभी कभी तो हँस कर बाय बाय भी कर देता है

बहुत मासूम हैं सवाल उसके अभी
कुछ सालों में बड़े पेचीदा से हो जायेंगे यही सवाल!

नाम उसका लिखने की ज़रूरत तो नहीं...
अभी उसके नाम से कोई मतलब निकाल लो
इसकी भी ज़रूरत नहीं

बस ऐसे ही है कोई-
पड़ोसी-
मासूम सा,
जो आ जाता है बिना बुलाये
घर मेरे

कल आ गया था बैट लेकर झगड़ने को
लेकिन हर बार ठहाका लगा कर हँस ही देता था
जब मारता था मुझे

ऐसे ही रिश्ता सा बन गया है उससे,
कुछ रिश्ते बन जाते हैं
खुद-ब-खुद

उन्हें "फोर्मालिटी" की ज़रूरत नहीं होती!

कौन है वो?


वो कौन है ?

तुमने कई बार कहा मुझसे,
उसने ही बना डाली है ये दुनिया 
इज़ाद किया है उसने कई बेवकूफियों को
तुमने कई बार मुझसे कहा है

मैं आज तक समझ नहीं पाया
वो कौन है?

वो कोई साइंटिस्ट है ?
जिसने हर लम्हात नयी चीज़ों को जन्म दिया
वो देता रहा रूप अपने ही ख्यालों को,
सोच भी ना सका की
वो ख्याल सिर्फ ख्याल ही होते तो बेहतर रहता

वो कोई accountant है ?
जिसने बना रखा है बही-खाता
हर धर्म के व्यापारियों का,
जो हिसाब रखता है
हर साँस का
जो देता नहीं मुफ्त की खुशियाँ कभी

वो कोई सलेस्मैन है ?
जो बेच रहा है अपने प्रोडक्ट को बारी-बारी
इंसानों के हाथ
बेच रहा है अपनी बनाई ज़मीन को
अपने बनाये आसमान को
अपने ही बनाये इंसान को
मार्केटिंग भी आती है उसे अच्छे से!

या बैठा कोई राइटर है
जो लिख रहा है एक लम्बा उपन्यास...
अपने ही ज़िन्दगी के ऊपर-
वो उपन्यास जो कोई पढ़ नहीं पायेगा
सिर्फ आंसू ही दिखेंगे वहाँ
अपना ही मज़ाक उड़ाता रहता होगा वो
एक बहुत ही अजीब सा मज़ाक
जहाँ सभी मज़ाक का हिस्सा हैं...

बहुत ही सिनिकल सा है वो!

लेकिन पता नहीं
कौन है वो?

मै


अब मै छंद मुक्त हूँ!

भाषा -विहीन
दिशा -विहीन
अब सिर्फ एह्सासों का झुण्ड हूँ
अब मै छंद -मुक्त हूँ

तृप्त सा अतृप्त
अतृप्त सा तृप्त
अब मै बुझी सी जागी
जागी सी बुझी प्यास हूँ

इकतारे से सितार की
सितार से इकतारे की
बिखरती साज़ हूँ
अब खामोश आवाज़ हूँ

छंद भी हूँ
गद्य भी हूँ
कविता -कहानी -उपन्यास हूँ

अब बस एक शब्द हूँ
शब्द -विहीन हूँ
अब छंद -मुक्त हूँ!