आजकल सुबह सुबह
मुलाक़ात हो जाती है
उस शैतान से फ़रिश्ते से!
ऐसा होता नहीं कभी की मुझे जाने दे
घर से वो बिना कुछ सवाल किये
पूछ लेता है बार बार
"कहाँ जा लहे हो ?
क्यों जा लहे हो ?
हाथ में क्या है तुम्हाले?
ये ताला क्यों लगा लहे हो ?"
कभी कभी तो हँस कर बाय बाय भी कर देता है
बहुत मासूम हैं सवाल उसके अभी
कुछ सालों में बड़े पेचीदा से हो जायेंगे यही सवाल!
मुलाक़ात हो जाती है
उस शैतान से फ़रिश्ते से!
ऐसा होता नहीं कभी की मुझे जाने दे
घर से वो बिना कुछ सवाल किये
पूछ लेता है बार बार
"कहाँ जा लहे हो ?
क्यों जा लहे हो ?
हाथ में क्या है तुम्हाले?
ये ताला क्यों लगा लहे हो ?"
कभी कभी तो हँस कर बाय बाय भी कर देता है
बहुत मासूम हैं सवाल उसके अभी
कुछ सालों में बड़े पेचीदा से हो जायेंगे यही सवाल!
नाम उसका लिखने की ज़रूरत तो नहीं...
अभी उसके नाम से कोई मतलब निकाल लो
इसकी भी ज़रूरत नहीं
बस ऐसे ही है कोई-
पड़ोसी-
मासूम सा,
जो आ जाता है बिना बुलाये
घर मेरे
कल आ गया था बैट लेकर झगड़ने को
लेकिन हर बार ठहाका लगा कर हँस ही देता था
जब मारता था मुझे
ऐसे ही रिश्ता सा बन गया है उससे,
कुछ रिश्ते बन जाते हैं
खुद-ब-खुद
उन्हें "फोर्मालिटी" की ज़रूरत नहीं होती!
अभी उसके नाम से कोई मतलब निकाल लो
इसकी भी ज़रूरत नहीं
बस ऐसे ही है कोई-
पड़ोसी-
मासूम सा,
जो आ जाता है बिना बुलाये
घर मेरे
कल आ गया था बैट लेकर झगड़ने को
लेकिन हर बार ठहाका लगा कर हँस ही देता था
जब मारता था मुझे
ऐसे ही रिश्ता सा बन गया है उससे,
कुछ रिश्ते बन जाते हैं
खुद-ब-खुद
उन्हें "फोर्मालिटी" की ज़रूरत नहीं होती!
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