दर्द

बेदर्द हूँ, दर्द लाया जा रहा है
भूली याद को बुलाया जा रहा है 

मैं अब वो नहीं जो था कभी
मुझे वहशी बनाया जा रहा है

तुम्हें जाना था तो आये क्यों थे
ये रिश्ता सिर्फ निभाया जा रहा है

मैं जो था जैसा भी था वो मैं था
मुझे कुछ और बनाया जा रहा है 

- 12.8.17

मेरी सारी कवितायें झूठी हैं

मैं सालों से झूठ
लिख रहा हूँ
और तुम उसे पढ़ रहे हो

मेरे झूठ को मेरा सच मान कर
तुम मुझे महान समझ रहे हो
-मैं इस बात से खुश होता हूँ

मेरी झूठी कविताओं में
तुमने ख़ुद को खोज भी लिया है
-आह! कितनी अद्भुत बात है ये

मेरे सारे झूठ के पीछे
मैं लाल रंग के हाफ पैंट
में बैठा हँसता हूँ

(मैं तुम्हें बेवकूफ बनाते हुए नहीं थकता
तुम बेवकूफ बनते नहीं थकते)

कवि से प्रेम मत करना
वो सिर्फ तुम्हारी
बेवकूफियों पर
कवितायें लिख रहा है

लेकिन रुको-
मैं भी तुम्हारी कविता पढ़ता हूँ
मैं भी तुमसे प्रेम करता हूँ
मैं भी तुम्हें महान मानता हूँ

हम दोनों कितना झूठ जी रहे हैं
ये दुनिया कितनी झूठी है

17.8.17

खेल

ये सारा खेल जो रचा है मैंने
वो सब है साथ निभाने का
दो पल साथ चलने का

मैं पास तुम्हारे आता हूँ
जब भी
मैं पास खुद के भी
आता हूँ
-तुम में मैं रहता हूँ

जिस दिन ये पता बदल जाएगा
ये सारा खेल खत्म हो जाएगा

तब तक
आओ ना
ये खेल खेलते हैं

11.8.16

सरहद पार से

मैंने सरहद पार की कहानियां सुनी हैँ
सुना है कितना कुछ
सुनना है कितना कुछ

कितना कुछ बाकी रह गया
कितना कुछ सुनाओगे

सरहद पार से लोरियाँ
सुनने का मन है
सुन कर लोरी
सो जाने का मन है

मुझे बताओ कि तुमने भी
खेला क्या छुप्पन छुपाई
लट्टू फिराया क्या
दोपहर के वक़्त
भाग कर क्रिकेट खेलते थे?
मैं ये सब करता था...
मुझसे हूँ हो ना तुम भी?

अब देखने का मन है-
मुझे बुला लो दोस्त
लूडो खेलेंगे
क्रिकेट खेलेंगे
नज़्में सुनेंगे

तुम भी आना
मिलना मुझसे
सत्तू के पराठे खिलाऊंगा।

16.8.17
(ये कविता BBC Hindi के लाइव प्रोग्राम में लिखी गयी थी जहाँ हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के युवा कवि और शायर एक दूसरे से Facebook Live पर Skype के ज़रिए बात कर रहे थे। अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए मैंने ये कविता पाकिस्तान के दोस्तों के लिए लिखी।)