मैं तुम्हारा...

समझो मत मुझे
शब्दों में,
पहचानों मुझे
शब्दहीनता में

शब्द से परे,
आकार से दूर
मौन की ध्वनि में

पहचानों मुझे
मत मेरी छाया में,
समझो मुझे
स्वयं में।

-22.05.2014

जुपिटर- 5

सबसे पहले
मौत हुयी
गांधीवाद की,
फिर मरा गाँधी

मार्क्स के
मरने के पहले
गला रेत कर
मार दिया गया था
मार्क्सवाद

यीशु के
सूली चढ़ने
से पहले
हत्या हो गयी थी
क्रिस्चानिटी की

मोहम्मद
जब मरा
तब इस्लाम
मर चुका था

राम के
रहते गला घुट
चुका था
सनातन धर्म का

सभी शुरुआत
से पहले
अंत हुआ
सबका

अब,
जब सब कुछ
ख़त्म हो
चुका है
हम रह रहे हैं
एक छलावे में-
छलावा हिन्दुस्तान
छलावा पाकिस्तान
छलावा जन्म
छलावा मृत्यु
छलावा तुम
छलावा मैं

छलावे से दूर
जब जायेंगे हम
पाएंगे हम
सच
-पूर्ण सच
ना सत्य तुम्हारा
ना सत्य मेरा

सत्य
मिलेगा हमें
जुपिटर पर।

-06.05.2014

जुपिटर- 4

जियोग्राफी के
पहले
हिस्ट्री के
शुरुआत में-
एक पल था

उस पल में
क़ैद थे
मौन वक़्त के
सभी लम्हें,
बंद थे उसमे
इतिहास के बाद का
इतिहास,
भूगोल के पहले का
भूगोल
आदि भी
अंत भी
सच भी
झूठ भी
सफ़ेद भी
स्याह भी

और फिर
वो लम्हा
खो गया

मेरे दोस्त
साबू ने कहा है
मौजूद है
वो लम्हा
उसके घर के
पास वाले बगीचे में

-वो बगीचा
बुलाता है मुझको
बार-बार
जब भी सोता हूँ मैं,
आ जाता है
सपने में,
बेकार है सभी
नींद की गोली-
नींद उड़ जाती है
कभी-कभी
नींद में भी

अब ज़रूरी है
जाना वहाँ,
ज़रूरी है मिलना
उन सबसे,
ज़रूरी है
देखना सबकुछ,
ज़रूरी है
पाना उस
खो चुके पल को

कल सुबह की
पहली ट्रेन से
जाना है मुझको
उस पार,
जुपिटर पर।

-06.05.204

जुपिटर- 3

अब पानी भी
खामोश है,
चुप हो गए बादल,
चिलचिलाती धूप
है शांत,
पत्ते सारे के सारे
थम गए,
रुक गयी है हवा

-मैंने बता दिया है
सबको
धरती पागल है,
धोखा है
सिविलाइज़ेशन

अब सबके सब
चलेंगे मेरे साथ
एक नयी दुनिया
बसाने-
जुपिटर पर।

-06.05.204