रात भर जगने के बाद की सुबह

रात भर जग कर
सुबह को सुबह की तरह नहीं
रात की तरह ही देखता हूँ

सुबह की ठंडक
रात की नरमी सी लगती है
और सूरज
पूर्णिमा के चाँद से बेहतर
नज़र आता है

मैं
रात और दिन के चक्कर में नहीं
फँसना चाहता
मैं
अच्छे और बुरे को नहीं समझना
चाहता
मैं
जो जैसा है को वैसे ही प्राप्त करना
चाहता हूँ

लेकिन
रात भर जागने के बाद
सब कुछ वैसा नहीं रहता जैसा है
सबकुछ बदल जाता है
और मैं सबकुछ देखने के बाद
सुबह सुबह सो जाता हूँ
बिल्कुल रात 11 बजे सोने की तरह

30.10.17

मौत के बहुत करीब आ जाता हूँ

मौत के बहुत करीब आ जाता हूँ
तब एक ग़ज़ल तुमको सुनाता हूँ

कितना कुछ याद आ जाता है
कितना कुछ मैं भूल जाता हूँ

कोई और है जो इंकलाब लाएगा
मैं अब वापस घर को जाता हूँ

इत्ती सी बात और रूठ गए सभी
आओ सब, मैं तुमको मनाता हूँ

12.11.17

मेरे मरने के बाद

मेरे मरने के बाद
मुझे वैसे याद करना
जैसे एक मृत कवि को याद करते हैं

तब तुम भूल जाओगे
मेरा किया बाकि सब
मुझे मेरे शब्दों से याद करोगे

तुम मुझे सिर्फ
इस बात से याद करना
कि मैं क्या सोचता था-
प्रेम के बारे में
जीवन के बारे में
मृत्यु के बारे में
अनंत के बारे में

मुझे बाकी लोगों
कि तरह मत याद करना-
कि मैंने कितना कमाया
कितना गवांया
क्या किया
क्या नहीं कर पाया

मुझे याद करना
कि जब मैं कुछ नहीं
करता था
तो क्या करता था

मैं तुम्हारी यादों में
एक कविता बना रहना चाहता हूँ
जिसे तुम जब भी पढ़ो
किसी और को भी सुनाने का मन करे
कि मैं तुम दोनों के लिये
दो सेकेंड की मुस्कान ला सकूँ
-मरने के बाद भी

15.11.17