एहसास हूँ, एहसास विहीन हूँ... स्वास हूँ, नि:स्वास हूँ...
मौत के बहुत करीब आ जाता हूँ तब एक ग़ज़ल तुमको सुनाता हूँ
कितना कुछ याद आ जाता है कितना कुछ मैं भूल जाता हूँ
कोई और है जो इंकलाब लाएगा मैं अब वापस घर को जाता हूँ
इत्ती सी बात और रूठ गए सभी आओ सब, मैं तुमको मनाता हूँ
12.11.17
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