रात भर जग कर
सुबह को सुबह की तरह नहीं
रात की तरह ही देखता हूँ
सुबह की ठंडक
रात की नरमी सी लगती है
और सूरज
पूर्णिमा के चाँद से बेहतर
नज़र आता है
मैं
रात और दिन के चक्कर में नहीं
फँसना चाहता
मैं
अच्छे और बुरे को नहीं समझना
चाहता
मैं
जो जैसा है को वैसे ही प्राप्त करना
चाहता हूँ
लेकिन
रात भर जागने के बाद
सब कुछ वैसा नहीं रहता जैसा है
सबकुछ बदल जाता है
और मैं सबकुछ देखने के बाद
सुबह सुबह सो जाता हूँ
बिल्कुल रात 11 बजे सोने की तरह
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