दादी से कहो एक कहानी सुना दें
वो कहानी कि जिसमें राजा ना हो कोई रानी ना हो
वो कहानी कि जिसमें दुनिया मोहब्बत से अनजानी ना हो
वो कहानी कि जिसमें सब सिर्फ अंत में खुश ना रहें
वो कहानी कि जिसमें थोड़ा सा हँसे, थोड़ा सा रो लें
वो कहानी कि जिसमें शुरुआत ना हो
वो कहानी कि जिसमें अंत वाली बात ना हो
बात इतनी सी है कि कहानी सारी पुरानी हो गयी
इतना बोला सबने कि हर कहानी बेमानी हो गयी
बूढ़े बाबा से कहना एक गीत सुना दें
वो गीत ऐसा कि सर्द सुबह में धूप थोड़ी दे दे
वो गीत ऐसा कि कोई फिर ख़ुदा को ना खोजे
वो गीत ऐसा कि कोई रोता ना हो
वो गीत ऐसा कि कोई भूख से सोता ना हो
वो गीत ऐसा कि ग़ज़ल भी, कविता भी
वो गीत ऐसा कि सबकुछ भी, कुछ ना भी
बात इतनी सी है कि गीत सारे खो गए हैं
जिनके पास थे वो सब नशे में सो गए हैं
साथी से कहना कुछ देर बस सुन ले
वो सुनना ऐसा कि जब तुम कुछ ना बोलो
वो सुनना ऐसा कि जब तुम ज़ुबाँ भी ना खोलो
वो सुनना ऐसा कि भीड़ में भी सिर्फ एक शब्द सुना
वो सुनना ऐसा कि तेरी अधपकी बातों से सब बुना
वो सुनना ऐसा कि खेत में फसल का लहलहाना
वो सुनना ऐसा कि बादलों का बस बरस जाना
बात इतनी सी है कि साथी, अब कोई सुनता नहीं
खेत की पुकार अब बादल समझता भी नहीं
दादी-बाबा से मिल लेंगे
एक कहानी सुन लेंगे, एक गीत सुन लेंगे
फिर, हम व्यस्त हो जायेंगे जीवन जीने में
सिर्फ बोलेंगे, खूब बोलेंगे, नहीं कुछ सुनेंगे!
6.2.19
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