कई बार मैंने ख़ुद को एक सब्जेक्ट की तरह देखा
और पाया मेरा चेहरा वैसा नहीं जैसा मैं सोचता हूँ
फिर कैमरे को ऊपर नीचे करके
एक नया चेहरा देखने की असफल कोशिश करता हूँ
ठीक वैसे जैसे
एक चित्रकार जब ख़ुद की तस्वीर बनाता है
तो वो अपने चेहरे को एक अजनबी आँखों से देखता है
चेहरे का मानचित्र
उसके दिमाग़ में अलग है
चित्र में कुछ और उतरता है
जब एक नये काम के लिए
कोई माँगता है मेरा लिखित परिचय
तो थर्ड पर्सन में ख़ुद के बारे में
मैं थोड़ा बहुत झूठ लिखता हूँ
असहज भी होता हूँ, पर चलता है
ठीक वैसे जैसे
एक लेखक अपनी किताब की बैककवर के लिए
‘लेखक के बारे में’ ख़ुद ही लिखता है
वो ख़ुद को उस लेखक की तरह देखता है
जैसा वो बनना चाहता है
पर नहीं बन पा रहा कई किताबों को लिखने के बाद भी
मैं तुम्हारी नज़रों से ख़ुद को देखना चाहता हूँ
पर जानता हूँ ये कभी मुमकिन नहीं होगा
मेरी भी सीमायें हैं
अंत में जो भी पाऊँगा, ख़ुद ही बनाऊँगा
इसलिए सेल्फ़-पोर्ट्रेट के अत्याचार से घिरा रहूँगा हमेशा।
4.1.25
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