गाता हूँ, गुनगुनाता हूँ
गीत तुमको सुनाता हूँ
लिख रही हैं कुछ तुम्हारी पलकें
संग इनके गीत एक बनाता हूँ
बहुत दिन से रो रही थी आँखें
अब तो मैं भी मुस्कुराता हूँ
जो ज़िन्दगी का दिया बुझने लगता है
मैं ख़ुद अपना दिल जलाता हूँ
रात कभी बेकार होती नहीं मेरी
मैं ख़्वाबों के तीर चलाता हूँ
जो ना हो तुम मेरे पास तो क्या हुआ
मैं अरमानों के दरवाज़े खटखटाता हूँ
चुप रहो, कुछ मत कहो-
"कुछ देर के लिए मैं बस एक सन्नाटा हूँ"
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