कुछ ख़याल 6

दरमयान हमारे ये दूरी कैसी आ गयी,
कि अब मुलाक़ात 
सिर्फ ख़्वाबों में होती है!

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वो जो मुलाक़ात ज़िन्दगी से हुई
ज़िन्दगी कुछ हैरान सी रह गयी

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मंजिल की फ़िक्र तो वो करें
जिन्हें सफ़र से प्यार नहीं 

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हमें इख्तियार नहीं अपने आप पर
आप वक़्त की बातें करते हैं 
मैं खुद का भी नहीं हूँ
आप अपनी बातें करते हैं

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वक़्त ने बाँध रखा है ज़िन्दगी को
पता नहीं कितना जायज़ है ये 
जो हम बाँध दे कविता को वक़्त के बंधन में 
हरगिज़ नाजायज़ है ये

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हैं कहानियाँ बहुत हमारे पास
ये तेरा मेरा अफसाना है
हमें छोड़ दो इन गलियों में
कि तुम्हे घर भी जाना है

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