दरमयान हमारे ये दूरी कैसी आ गयी,
कि अब मुलाक़ात
सिर्फ ख़्वाबों में होती है!
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वो जो मुलाक़ात ज़िन्दगी से हुई
ज़िन्दगी कुछ हैरान सी रह गयी
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मंजिल की फ़िक्र तो वो करें
जिन्हें सफ़र से प्यार नहीं
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हमें इख्तियार नहीं अपने आप पर
आप वक़्त की बातें करते हैं
मैं खुद का भी नहीं हूँ
आप अपनी बातें करते हैं
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वक़्त ने बाँध रखा है ज़िन्दगी को
पता नहीं कितना जायज़ है ये
जो हम बाँध दे कविता को वक़्त के बंधन में
हरगिज़ नाजायज़ है ये
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हैं कहानियाँ बहुत हमारे पास
ये तेरा मेरा अफसाना है
हमें छोड़ दो इन गलियों में
कि तुम्हे घर भी जाना है
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kya bat hai.....bahut hi badhiya.....tarif
जवाब देंहटाएंwow fully impressed
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