रोज़ रोज़ का जीवन

मैं रोज़ एक उपन्यास लिखना शुरू करता हूँ
और रोज़ नहीं लिख पाता

रोज़ ही एक कहानी कहना चाहता हूँ
रोज़ ही कहानी नहीं कह पाता

रोज़ कविता लिखने की कोशिश में
रोज़ कविता नहीं लिख पाता

कविता कहानी उपन्यास 
जीवन जीने सरीखा है

रोज़ जीने से बेहतर होता कि 
हम कुछ दिन जीते

सार्थक दिन...

जिस दिन कविता कह पाया 
बस उस दिन को जीवन माना गया

24.10.2020

मैं धीरे धीरे बूढ़ा होता हूँ

मैं धीरे धीरे बूढ़ा होता हूँ

मैं धीरे धीरे ही ये देख रहा हूँ
जीवन जीने की प्रक्रिया में 
अचानक कुछ नहीं होता
धीरे धीरे ही चेहरे पर झुर्रियाँ आती हैं
धीरे धीरे ही दाढ़ी सफ़ेद होती है
धीरे धीरे ही कमर का दर्द बढ़ता है
धीरे धीरे ही स्मृतियाँ धुंधली होती हैं
धीरे धीरे ही बचपन की यादें प्रबल होती हैं

जैसे प्रेम अचानक नहीं होता
वैसे ही अचानक कोई बूढ़ा नहीं होता

प्रेम के साथ बूढ़ा होना सुखद है

पूरे साल में 
कोई मौसम अचानक नहीं आता
धीरे धीरे ही सर्दी आती है
धीरे धीरे ही गर्मी
एक दिन तेज़ बरसात आती है
पर उससे पहले कई दिन 
धीमी गति पर बूंदें गिरती हैं

मैंने एक टाइम-लैप्स वीडियो बनाया
और देखा कि सबकुछ जल्दी बीत गया

अंतिम क्षण में जीवन को टाइम-लैप्स में देख सकें
तो क्या देखेंगे?
धीरे धीरे की जगह जल्दी जल्दी में सब दिखेगा
और जल्दी जल्दी में कुछ समझ नहीं आएगा
जहाँ कई साल बैठे रहे 
उस जगह से कुछ सेकंड में उठ जाएंगे
कितना दुखद होगा
अंतिम क्षण में पूरे उम्र के प्रेम को 
कुछ सेकंड में देखना

25.9.20

खालीपन

"मैं खाली हूँ" कहना आसान है,
आसान नहीं "खाली होना"

कई सालों की काई
जमी है दिमाग में

भरा हुआ है पूरा शरीर
भाषाओं से -
शब्द भाषा
मूक भाषा 

भरा हुआ है पूरा शरीर 
आकांक्षाओं से -
खाली होने की आकांक्षा
अंतिम आकांक्षा है

खाली होने में समय लगता है 
बूंद बूंद निचोड़े जाने के बाद
आदमी खाली होता है

उससे पहले आदमी भरा हुआ है

थोड़ा थोड़ा खाली होते रहना 
जीवन की प्रक्रिया है

खालीपन मोक्ष है -
मोक्ष सबको नहीं मिलती 
मृत्यु से पहले।

3.9.20

कुछ लेकर वापस थोड़े ही जाना है

कुछ लेकर वापस थोड़े ही जाना है
ऐ दुनिया, सारा हिसाब चुकाना है 

तू कोई आखरी इंसान तो नहीं है
तेरे बाद भी किसी को आना है

अच्छा भी याद है, बुरा भी याद है
जिसने जो दिया वापस लौटाना है

मैं सच देख लेता हूँ सबकी आंखों में
ये झूठी बात है कि झूठा ज़माना है

कोई अपना दिल खोल कर लिखता है
और दुनिया कहे 'ये तो अफसाना है'

17.2.20

कुछ भी होने से पहले

कुछ भी होने से पहले
मैं इंसान हूँ 

कहीं भी नौकरी करने से पहले 
मैं इंसान ही था 
कोई भी कविता लिखने से पहले 
मुझे मालूम था इंसान होना क्या होता है 
किसी भी देश का नागरिक होने से पहले 
मैं इंसान बना था

कहीं भी किसी के साथ अन्याय
एक इंसान के साथ अन्याय है 
मेरी पहचान मुझे अंधा नहीं कर सकती 
एक अन्याय को पहचानने से 
मैं सिरे से खारिज करता हूँ
अंधभक्ति को 
मैं सिरे से खारिज करता हूँ
किसी भी सूरत में किसी का ज़ुल्म

कुछ भी होने से पहले 
मैं इंसान हूँ 
इसलिए कुछ भी होने से पहले 
मुझे बोलना होगा
मुझे बोल कर लोगों को 
याद दिलाना होगा
कि कुछ भी होने से पहले
वो इंसान हैं

22.12.2019

वैज्ञानिक

जब लगता है
मानव सभ्यता ने खोज डाला है
सबकुछ अंतरिक्ष में
तब
एक नया वैज्ञानिक
खोज कर लाता है एक नया तारा
या धूमकेतु कोई

बिल्कुल वैसे
जैसे हमारे बहुत साफ-सुथरे
घर से
माँ खोज निकालती है
ढेर सारा कचरा

[11.10.2019]

कविता पर अधिकार

मेरी प्रेम कविता
अगर तुम्हारी प्रेमिका को
कुछ देर के लिए बहला सके,
तो इसे अपनी बता कर
उसे सुना देना

मेरी कोई भी कविता
अगर किसी को
दोपहर की धूप में
थोड़ा भी सुख दे सके तो
उसे सुना देना

कोई भी कवि
कविता से बड़ा नहीं है
किसी भी कवि का
कोई अधिकार नहीं है
शब्दों पर

शब्दों को आगे-पीछे रख कर
जो वाक्य बनता है
उस पर सबका बराबर अधिकार है

कविता बहुत छोटी है
एक मासूम मुस्कान के सामने

एक कविता अगर किसी को
मुस्कुराहट दे सके
अगर एक कविता किसी को
हिम्मत दे सके
तो कविता ने अपना काम कर लिया है

सुना देना उसे
और उसकी मुस्कान में
कविता के शब्दों को
बिखरते हुए देखना

- 4.9.19

एक टुकड़ा अंधकार

बहुत उजाले से घिर जाने के बाद
मैं एक टुकड़ा अंधकार अपने जेब से निकाल कर
दुनिया के सामने परोस देता हूँ

बहुत उजाले में
बहुत ठीक से नहीं दिखता
थोड़े अंधकार में
लगभग ठीक दिख जाता है

उजाले की ऊष्मा को
अंधकार की शीतलता ढक लेती है
बिल्कुल वैसे जैसे
रेगिस्तान में पानी का मिलना

उजला रंग बहुत साफ़ दिखता है
लेकिन दुनिया में इतना साफ़ कुछ नहीं
जितना अकेले उजला रंग

अंधकार का कालापन
अपने अंदर सब समा लेता है
अंधकार थोड़ा-थोड़ा सेक्युलर है

और लोगों ने अंधकार से डर कर
रात भर अपने-अपने घरों में
रोशनी कर रखी है

अपने हिस्से का अंधकार खोने के बाद
हमारे पास जो बचा है
वो सबको दिख रहा है
सब उसके लिए लड़ रहे हैं

4.9.19

मैं एक नई कविता कहना चाहता हूँ

मैं एक नई कविता कहना चाहता हूँ

वो कविता जिसमें एक नई बात हो
जिसे किसी ने कभी ना कहा हो

वो कविता जिसे कह कर
मैं मुस्कुरा सकूँ
वो कविता
जो मुझे मेरे हिस्से का सुख दे सके
वो कविता जिसके साथ
मैं चल सकूँ
कुछ देर बात कर सकूँ

उस नई कविता से मैं
नई दुनिया की कल्पना कर पाऊँ
उस नई कविता की सुंदरता में
मैं एक नए संसार की
सुंदरता को देख सकूँ

कि जब इंसानी सभ्यता
सारे पेड़ काट चुकी होगी
मेरी इस कविता से
मैं अपने हिस्से का ऑक्सीजन ले पाऊँ

मेरी नई कविता
एक नए भाषा को जन्म दे
कि जिसके बोल सुन कर
पेड़ों पर नए पत्ते उग आएं
मैं बोलूँ 'बादल'
और मैं बादलों से घिर जाऊँ
कि इस भाषा में सिर्फ 'वर्षा'
बोलने भर से बारिश हो जाए

लेकिन,
ये सब मुझे इतना कहने भर से मिल जाता है
कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
और ये बात बिल्कुल भी नई नहीं है

- 4.9.19

दूर शहर में

मैंने अक्सर पाया है
किसी दूर शहर में चलते हुए खुद को

अक्सर पाया है
कि मैं उस समय उस शहर को नहीं
समझ पाता
जितना वहाँ से वापस घर आकर
समझता हूँ -
बिल्कुल एक बीत चुके रिश्ते की तरह,
कि जब तक रिश्ते में रहे
एक दूसरे को समझ नहीं पाए
जितना एक दूसरे से दूर जाने के बाद समझा

एक नए रिश्ते में हम
एक नए शहर में बस रहे होते हैं
नया घर, नई सड़क
नई बातें, नई मुलाक़ातें
नया सबकुछ

जब शहर पुराना हो जाता है
तब हम किसी दूसरे शहर की तरफ बढ़ते हैं
और ये निरन्तर चलता रहता है

कई साल बाद
किसी फोटोग्राफ को देखते हुए
हम सोचते हैं
"उफ, ये शहर कितना अच्छा था"

लेकिन अब उस शहर तक जाने के
सारे रास्ते बंद हो चुके हैं

16.5.19