मैं रोज़ एक उपन्यास लिखना शुरू करता हूँ
और रोज़ नहीं लिख पाता
रोज़ ही एक कहानी कहना चाहता हूँ
रोज़ ही कहानी नहीं कह पाता
रोज़ कविता लिखने की कोशिश में
रोज़ कविता नहीं लिख पाता
कविता कहानी उपन्यास
जीवन जीने सरीखा है
रोज़ जीने से बेहतर होता कि
हम कुछ दिन जीते
सार्थक दिन...
जिस दिन कविता कह पाया
बस उस दिन को जीवन माना गया
24.10.2020
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