कुछ ख़याल 2


कभी हिन्दू, तो कभी मुस्लिम 
कभी कम्युनिस्ट बनती रही

चौराहे की बत्ती धर्म बदलती रही!

*

वो कैसा तूफ़ान उठा था
मेरी पहचान भी उड़ा ले गया

क्या अब भी मुझे पहचानोगे?

*

बहुत उदास सा लगता है आजकल
मोहल्ले का वो बड़ा पुराना पेड़

पतझड़ में कुछ नए पत्ते गिर गए

*

एक सुहागिन की बिंदी है वो,
खोजती है अपने शौहर को

चौराहे की लाल बत्ती थी, बुझ गयी!

*

बंद हो जाएँगी धर्म की खोखली किताबें

जब लैला की मांग सिन्दूरी होगी,
जब किसन निकाह रचाएगा!

*

अब नहीं कोई दीवार सरहद पर,
टूट गयी दीवारें, गिर गए पत्थर

गिरी दीवारों के नीचे आवाम की लाश दबी है!

*

मैं भी इंसान समझता हूँ खुद को,
तुम भी अपने आप को इंसान कह लो

ये खुशफ़हमी बहुत लोगों को है आजकल!

*

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