बचपन के लिए...

ना दिखा मुझे वो हसीन लम्हे फिर से
ज़िन्दगी ऐसे भी खुशगुवार लगने लगी है 

क्या वो बचपन था या हसीन तरन्नुम कोई?
ज़िन्दगी अब बड़ी बेसाज़ लगने लगी है!

*

एक मासूम बच्चे सी है ज़िन्दगी,
खुद सवाल करती है,
खुद जवाब खोजती है...

अपने आप से ये हैरान है आजकल!

*

इस चौराहे को देख कर ख्याल आया
अभी तो यहीं था, 
जाने किधर गया

मेरा बचपन!

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