मैंने सरहद पार की कहानियां सुनी हैँ
सुना है कितना कुछ
सुनना है कितना कुछ
कितना कुछ बाकी रह गया
कितना कुछ सुनाओगे
सरहद पार से लोरियाँ
सुनने का मन है
सुन कर लोरी
सो जाने का मन है
मुझे बताओ कि तुमने भी
खेला क्या छुप्पन छुपाई
लट्टू फिराया क्या
दोपहर के वक़्त
भाग कर क्रिकेट खेलते थे?
मैं ये सब करता था...
मुझसे हूँ हो ना तुम भी?
अब देखने का मन है-
मुझे बुला लो दोस्त
लूडो खेलेंगे
क्रिकेट खेलेंगे
नज़्में सुनेंगे
तुम भी आना
मिलना मुझसे
सत्तू के पराठे खिलाऊंगा।
16.8.17
(ये कविता BBC Hindi के लाइव प्रोग्राम में लिखी गयी थी जहाँ हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के युवा कवि और शायर एक दूसरे से Facebook Live पर Skype के ज़रिए बात कर रहे थे। अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए मैंने ये कविता पाकिस्तान के दोस्तों के लिए लिखी।)
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