मैं बरसात के
इस तरफ बैठा
उस तरफ के
बरसात को देखता हूँ
देखता हूँ
पानी, पत्ते, बादल,
तालाब, झील,
नदी, समुद्र
अपनी खिड़की से
खिड़की से
देखता हूँ कितना कुछ-
बरसात से धुल कर
दिखती हैं तस्वीरें साफ
मैं अपलक
देखता हूँ सबकुछ
निरंतर, लगातार
खिड़की से
यादें आती हैं
जाते हैं
संदेश कई
-शून्य में
शून्य में
शांति है
जो देवदार के
पेड़ों में भी है
कुछ देर के लिए
देवदार का पेड़ बनना
कितना सुखद है-
बिल्कुल खिड़की
से उस तरफ के
रुक चुके बरसात को
देखने जैसा।
-24.7.17
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