वो फुरसत के पल ढूँढता है
वो शहर में जंगल ढूँढता है
मिलते कहाँ दोस्त बिछड़े हुए
नए लोगों में पुराने ढूँढता है
बरसा, आंधी, गरमी ठीक है
वो बस पल सुहाने ढूँढता है
इतने समझदार लोग हैं यहाँ
वो दो-चार दीवाने ढूँढता है
कुछ खो सा गया पा कर भी
वो बीते ज़माने ढूँढता है
10.08.18
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