हैं कहानियाँ बहुत हमारे पास, ये तेरा मेरा अफसाना है
हमें छोड़ दो इन गलियों में, के तुम्हें घर भी जाना है
मैं मुझसा नहीं कोई और हूँ, लोग पागल भी कहते हैं
सब कुछ गवां के जो खोजूँ जाने वो कौन सा खजाना है
ख्वाब यूँ के सब खो गए, सपने सारे कब के सो गए
तुम आ जाओ बस- एक नींद बची है, साथ सो जाना है
मैं वहाँ पहुँच भी चुका जिस सफ़र पे साथ निकले थे
अरे, तुम ही खो गए, बस उम्र भर खुद को समझाना है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें