मैं चले जाने को देखता हूँ।
उस पल में जब चाँद रात भर धरती के करीब रह कर जाता है, तो मैं उस विरह को देखता हूँ। रात भर चाँद धरती की गोद में सोकर जा रहा होता है। धरती इस उम्मीद में कि चाँद लौटेगा, उसे जाने देती है। लेकिन सुबह के समय का विरह उसे भीगा देता है। आसमान में जो चिड़िया उड़ती हैं, वो सिर्फ विरह गीत गा रही होती हैं।
कहीं से जाना, कहीं आना है। लेकिन जाने में विरह गीत है। प्रेम का सच सिर्फ विरह में है। बाकि सब सिर्फ मोह है। मोह खूबसूरत है, विरह सच।
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"रात भर जगे हैं
आँखें भी तो थके हैं
देख कर तुमको ही
कोसों हम चले हैं
"चंदा रे तू कैसे सोयेगा
रात भर ख्वाब बोयेगा
हम तो जगे हैं
तेरे पास ही खड़े हैं
आ जा ना रे
आ जा ना...
आँसू भर भर बहे हैं
"हँसी तेरी याद आये
कैसे तू दिल लगाए
करे ठिठोली
हाँ, तू करे ठिठोली...
और अब हमें रुलाये
"दूर दुनिया घूम आना
हमको तुम मत भूलाना
सपनों में आ भी जाना
देखेंगे हम सुबह सुहाना
"चंदा रे तू कैसे सोयेगा
रात भर ख्वाब बोयेगा
आ जा ना रे...
आ जा ना..."
27.3.17
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