अब कविता नहीं कह पाता

वो अब कविता नहीं कह पाता
भूल चुका है कहना कहानियाँ वो
नज़्म और ग़ज़ल चुरा लिए गए
अब कुछ भी नहीं है उसके पास

अब उसके पैर आवारा नहीं रहे
सोच समझ कर चलते हैं
उँगलियाँ यूँ ही नहीं कुछ भी बोल देती हैं
-समझदार हो गए हैं सभी

अब नहीं बादलों के पास जाता वो
जूपिटर से नाता टूट चुका है
उड़ता नहीं, सिर्फ़ चलता है अब

लेकिन एक चिड़िया
जो बचपन में उड़ कर आयी थी
कहीं से-
बैठ गयी थी उसके कंधों पर
लाख बोलने पर भी नहीं जाती वो
-आज भी वहीं बैठी है
उसके कंधों पर

अब शायद वो उसे उड़ा ले जाएगी
हमेशा के लिए...

6.10.15

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