जुपिटर- 1

और अब
जब सब कुछ ही
विराना सा है-
वीरानी गलियाँ,
वीरान से रस्ते,
घर वीरान,
मन वीरान-
तब
सिर्फ जाना बाकी है
जुपिटर पर।

वहाँ जहाँ 
मैं रहता हूँ,
रहता था,
और रहना है-
बदमिजाज़ धरती
नहीं समेट सकती
मेरी भावनाओं
के समंदर को

-बोल देती है
पागल
जब भी बोलता हूँ
कोई इंतज़ार में है
जुपिटर पर।

जब कोई
नहीं समझता
बातों को,
तब कहता हूँ तुमसे,
"साथ चलते हैं ना
जुपिटर पर"
-तुम भी मुस्कुराते हुए
टाल देते हो
इस सफ़र को। 

वहाँ बैठा 
साबू इंतज़ार
कर रहा होगा-
इंतज़ार में होंगे
और भी दोस्त
जिनसे मिलवाना
है तुम्हे।

एक दिन
जब अकेला
चला जाऊंगा जुपिटर,
तब तुम खोजोगे
मुझे-
जानता हूँ। 

दुनिया का क्या है
वो तो कह देगी-
"कल रात
मर गया कोई"
मत मानना इस 
झूठ को-
मैं जुपिटर पर
दोस्तों के
साथ इंतज़ार
करूँगा तुम्हारा...

आ जाना जल्दी।
-08.04.2014

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