कोई और अब यहाँ रहता है शायद
जो कभी मुझे मेरा घर लगता था
मैं चाँद पे सोया हूँ, आ जाओ दोस्तों
वीरान है वो जगह जो शहर लगता था
मेरे खेल में मैं अकेला हूँ लेकिन
तुमसे कोई बात कहनी थी, सुनो
मैं अकेले खेल नहीं पाता
वो झूठ है जो कभी सच लगता था
इतने सच के बीच मैं कैसे रह सकता हूँ
मैं कहता नहीं वो बात जो कह सकता हूँ
मेरे पास दो पर है, आगे आसमान है, देखो
मेरे पर ले लो, उड़ो, फिर बताना कैसा लगता था
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें