मेरी अंतिम कविता

मुझसे मुलाक़ात तुम्हारी फिर ना होगी,
मैं तुझसे मिल ना सकूँगा, ऐ कविता|

मुझे अब भी याद है
जब पहली दफा
मिला था मैं तुझसे-
बारह साल पहले...
तब से अब तक
मैं अपनी दुनिया में
खास था
-अब मैं मामूली होना चाहता हूँ

सब खूबसूरत था-
सब झूठ था

मुझे सच की ज़रूरत नहीं है
मेरा झूठ बहुत सच्चा है
लेकिन अब इस झूठ का बोझ
बढ़ चला है

हर पल को कविता के
कैमरे में क़ैद करना,
नहीं चाहते हुए भी
शब्दों को आकार देना-
स्वीकार करना अपने आपको,
वो करना जो परे है
मेरे इंसानी हाथों और एहसास से-
अब नहीं होता|

दो महीने पहले उसने कहा
तू एक एस्केप है-
तब से अब तक मैं
इस जद्दोजहद में था
-वो भी तो कविता लिखता था...
उसने तेरा साथ क्यूँ छोड़ा?

और जॉन?
वो जो किरदार था उस नॉवेल में,
जो खुद को कवि समझता था
और लिखना भी चाहता था,
लेकिन उसे भी लगा कि वो कवि नहीं है-
मुझे भी लगता है मैं कवि नहीं हूँ,
ऐ मेरी अंतिम कविता|

अब मुझे लगता है
कोई कवि नहीं है
सब सिर्फ झूठे हैं-
ये अंतिम कविता भी
एक झूठ है-
सत्य कविता में नहीं है,
कहानी में नहीं है-
वो परे है इन सबसे
वो परे है हम सबसे

कविता में
शब्दों के बीच
जो जगह खाली है
वो मौन सत्य है
जो हमेशा हमारे साथ है,
ऐ मेरी अंतिम कविता|
27.10.12

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