आस्था

मैं देखता हूँ
उदासी से घिरे
उस घर को
जिसका सहारा सिर्फ
सुबह-दोपहर-शाम
का भजन है

उस परिवार के मुखिया
को असीम आस्था है
एक आपार शक्ति पर
जो एक दिन सारी
समस्याओं का अंत कर देगा-

वो ख़त्म कर देगा
कर्जदारों का क़र्ज़

देगा मुआवज़ा
कई सालों तक उस बाप के
अपने बच्चों के लिए
आधा पेट सोने का

वो दे देगा माँ को
एक नया गहना
जो वो अपने बेटे के पढ़ाई के कारण
नहीं पहन पाई

वो शायद अचानक से दे देगा
दहेज बेटी के लिए
जो पढ़ी-लिखी तो है
लेकिन इंतज़ार में है
उस असीम शक्ति के कृपा की

वो शायद बना देगा
उस नास्तिक बेटे को आस्तिक
बहुत खुशियाँ देकर
शायद कई हज़ार साल बाद
इस समाज का ढाँचा बदल कर

शायद कई युगों बाद
सिक्कों के वजन के तले
दब कर ख़त्म होती
कई आस्थाओं को फिर से जिंदा करेगा

शायद-शायद-शायद

फिर भी
उनकी सासें टिकी हैं
उस आस्था के ऊपर
जिनके सहारे वो जिंदा हैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें