एक ख़्वाब ज़िन्दगी

मैं ख्वाब हूँ, मैं ख्वाब हूँ, मैं ख्वाब हूँ
मेरा हकीक़त से वास्ता है क्या?
तुम मुझे ख्वाब में मिला करो,
मुझे पूर्णता: से करना है क्या?

तुम खोजते फिरते हो मतलब-ए-ज़िन्दगी
ज़िन्दगी मतलब से कोसों दूर है
चाहते हो शौहरत हर मोड़ पर
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मौत मशहूर है

मैं ख्वाब में जीता हूँ, ख्वाब में मरता हूँ
जो चाहता हूँ, हर वो चीज़ करता हूँ
जो पाने की हसरत तुम रखते हो
उसे मैं पाता हूँ, जब जी चाहे खो जाता हूँ

वो जो शोले दिखते थे दूर से, उसका नाम सूरज रख दिया
जब जी चाहे बुझाता हूँ, जब जी चाहे जलाता हूँ
वो जिसे तुम ढूँढ़ते हो, खोजते हो हर घड़ी
मैं अपनी सल्तनत में ख़ुदा कहलाता हूँ

जब हकीक़त सिर्फ भ्रम है
तो मैं क्यों भ्रम में जिया करूँ?
आँख मूंदे ज़िन्दगी बैठी है
और मैं ख्वाब हूँ, मैं ख्वाब हूँ, मैं ख्वाब हूँ!

ज़िन्दगी की उम्मीद

वो पेड़
ठीक से उगा भी नहीं
और मुरझा गया-
उसके पत्ते
अब भी
बारिश का इंतज़ार करते हैं

दो तीन सदियों पुराना
एक गुम्बद
उसके ठीक सामने खड़ा है,
कुछ बेजुबान बेंच
उसे घेर कर बैठे हैं,
बुझे हुए कुछ लैम्पपोस्ट
गड़े हैं ज़मीन में
उसके पास ही-
ये डराते हैं
ज़िन्दगी की हर उम्मीद को
वो पेड़
अपने साथ
जिंदगी की उम्मीद लेकर आया था
लेकिन
मौसम की बदमिज़ाजी ने
उसे मुरझा दिया

खामोश
वो अब भी बरसात का इंतज़ार करता है

उसके इर्द-गिर्द
दो-एक कवितायें घूमती हैं अक्सर
एक पन्ने पर उतरने की
कोशिश करती हैं

लेकिन
वो बेंच वो लैम्पपोस्ट वो गुम्बद-
सब के सब
उन्हें घेर कर
आत्महत्या करने पर मजबूर कर देते हैं

पर
वहाँ
हर रात
एक नयी कविता का जन्म होता है-
जिंदगी की उम्मीद के साथ

बड़ी मुश्किल से
एक कविता
बच कर
इस कागज पर उतरी है
इसे ज़िन्दगी से मोहब्बत है-
इसे ज़िन्दा रहने दो!

30.6.2012

बारिश का एक घर बनाएँ

चलो,
बारिश का एक घर बनाएँ
बूंदों से घर सजाएँ

बारिश का एक घर बनाएँ

ख़्वाब सारे एक साथ
झरोखे पर रख देंगे
जब जी करेगा
चुनेंगे, देखेंगे- हँस लेंगे

आँगन में होगी
शैतानी खूब सारी-
हम सूरज की किरणों से नहाएंगे
खेलेंगे कितकित और
लट्टू घुमाएंगे
होगी लुका-छुप्पी उनके साथ
जो हमें दोस्त कह कर खोज ले जायेंगे

ये सब होगा जब हम मिलेंगे
ख़्वाब देखेंगे
सपनों को महसूस करेंगे
आज़ाद कर देंगे सालों से क़ैद
अपने बचपन को
बिखेरेंगे बेमतलबी मुस्कान

चलो ना,
बारिश का एक घर बनाएँ
बूंदों से घर सजाएँ

कवितायें लिखना छोड़ दो

अब तुम कवितायें लिखना
छोड़ दो!
अब तुम कहानियाँ पढ़ना
छोड़ दो!
तुम्हारी संवेदनाएँ मर चुकी हैं

तुम बस कवितायें मैन्युफैक्चर कर सकते हो,
उनमे मर्म नहीं ला सकते!

किसी की भावनाओं को
समझ नहीं सकते तुम

मतलबी हो गए हो...

इंसानियत मर चुकी
है तुम्हारी!

जो तुम मिल सकते हो बचपने के साथ तो कहो

जो तुम मिल सकते हो बचपने के साथ तो कहो
हमें दिक्कत है बड़प्पन से, बात समझो तो कहो

तुम देखो शक की निगाहों से औ’ देखूँ मैं तुम्हें
ये रिवाज़ कैसे निभाऊं मैं, कुछ और हो तो कहो

मैं तलबगार दोस्ती का तुम रिश्ते निभाते पैसों से
साथ रहना हो तो तुम बदलो, जो ना हो तो कहो

कैसे कह दूँ कि मैं खुश हूँ अजनबी से माहौल में
मुझे जंगलों-पहाड़ों में रहना, चलना हो तो कहो

तुम देखते नहीं जो विपदा वो देखता हूँ मैं हमेशा
“रिश्ते ज़ब्त-सपने ज़ब्त”; तुम्हें देखना हो तो कहो

~~~
“अब लगता नहीं कि अपना बसेरा है इस गली
चलो ना,चलते हैं वहाँ जहाँ मोहब्बत हर डली”
~~~

आस्था

मैं देखता हूँ
उदासी से घिरे
उस घर को
जिसका सहारा सिर्फ
सुबह-दोपहर-शाम
का भजन है

उस परिवार के मुखिया
को असीम आस्था है
एक आपार शक्ति पर
जो एक दिन सारी
समस्याओं का अंत कर देगा-

वो ख़त्म कर देगा
कर्जदारों का क़र्ज़

देगा मुआवज़ा
कई सालों तक उस बाप के
अपने बच्चों के लिए
आधा पेट सोने का

वो दे देगा माँ को
एक नया गहना
जो वो अपने बेटे के पढ़ाई के कारण
नहीं पहन पाई

वो शायद अचानक से दे देगा
दहेज बेटी के लिए
जो पढ़ी-लिखी तो है
लेकिन इंतज़ार में है
उस असीम शक्ति के कृपा की

वो शायद बना देगा
उस नास्तिक बेटे को आस्तिक
बहुत खुशियाँ देकर
शायद कई हज़ार साल बाद
इस समाज का ढाँचा बदल कर

शायद कई युगों बाद
सिक्कों के वजन के तले
दब कर ख़त्म होती
कई आस्थाओं को फिर से जिंदा करेगा

शायद-शायद-शायद

फिर भी
उनकी सासें टिकी हैं
उस आस्था के ऊपर
जिनके सहारे वो जिंदा हैं

वो जो खूबसूरत है एक फूल की तरह!

वो जो शामिल है मेरे हर पल में 
जिसके साथ रहा हूँ चल मैं 
जिसके कारण ज़िन्दगी हुई रौशन 
एक नूर की तरह 

वो जो खूबसूरत है एक फूल की तरह!


जिसकी मुस्कान हर ग़म भुला दे
जिसका समर्पण प्रेम करा दे 
वो जिसके प्यार के सामने हूँ 
सिर्फ एक धूल की तरह 

वो जो खूबसूरत है एक फूल की तरह!


तुम समझती हो मुझे, तुम अपनाती हो मुझे
मैं तुम्हारा हूँ- इस हद तक जानती हो मुझे 
मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा हो तुम 
कभी भूल नहीं सकता भूल की तरह

तुम खूबसूरत हो सबसे खूबसूरत फूल की तरह!

समीप आना चाहता हूँ

वो दूर मुझसे जा रही, मैं समीप आना चाहता हूँ

जग विशाल समृद्ध सा है, 
तुम विभा इस जग की 
मैं शुन्य जगत के आकारों में, 
तुच्छ- घिरा हुआ विकारों में 

तुम आकार, मैं निराकार 
बस तुम्हे पाना चाहता हूँ 
मैं समीप आना चाहता हूँ!

मैं नहीं कोई और, तुम्हारी छाया हूँ 
स्वयं कुछ भी नहीं, तुमसे ही बन पाया हूँ 
तुम वर्षा, मैं प्यासा!
बस तुम्हे अपनाना चाहता हूँ
मैं समीप आना चाहता हूँ!

सामिप्य तुम्हारा चाहिए, सानिध्य तुम्हारा चाहिए 
पराया मत समझो, अपनापन तुम्हारा चाहिए, हक तुम्हारा चाहिए!

तुम आत्मा, मैं शरीर!
बस तुम्हारा स्पर्श चाहता हूँ 
एक होना चाहता हूँ 
समीप आना चाहता हूँ!

रात

शहर के तंग गलियारों में
रात के अँधेरे में
फूटपाथ पर-
उम्मीदों को जलते देखा है?
लाशों को चलते देखा है?
देखा है ठंड से सिकुड़ते रूह को?
देखा है लड़ते-झगड़ते जिस्म को?

सुनाई देती है गूँज ख़ामोशी की
मरने की बेबसी चीखती है
चिल्लाती है दिल की धड़कने
सुन्न कर देती है रूह को-
जब भेदती हैं सर्द हवाएँ
माँस के गर्म लोथरों को,
ज़िन्दगी प्यासी ही रह जाती है-
घाव से रिसते मवाद को
किसी की प्यास बुझाते देखा है?

लाशों के अंबार लगे होते हैं-
लाशें पड़ी रहती हैं
मक्खियाँ भिनभिनाती हैं
लाशों के ऊपर
ज़मीन लाल हो जाती है खून से,
और फिर लाशें पीती हैं खून
प्यास बुझाने के लिए

कभी सुना है-
सन्नाटे को काटती
सिसकती
रोती
चीखती
चिल्लाती
बेबस
आसुओं में सनी
जिस्म की पुकार?

तुम्हें सुनाई नहीं देगा
तुम्हें दिखाई नहीं देगा
तुम भी एक लाश हो!

बारिश में एक खुशबू है

बारिश में एक खुशबू है...

सौंधी सी
हलकी सी
जिसमे कोई मिलावट नहीं

वो खुशबू
जो बचपन
में भी सौंधी सी थी,
हलकी सी
बिना किसी मिलावट के

वो खुशबू
मुझे बचपन में लिखी
एक कविता की याद दिलाती है

"छल-छल करता, कल-कल करता
बरस रहा है बूँदा मोटा,
बूँद-बूँद को तरसे जीवन
जीवन का ये पहलू खोटा"

वो खुशबू
मुझे मेरे
बचपन की याद दिलाती है

वो खुशबू
मुझे उस नाव की
याद दिलाती है
जो मैं होमवर्क की कॉपी से
कागज़ फाड़ कर बनाता था-
जिसे मैं मोहल्ले के
छोटी सी नाली में
दौड़ाता था
जिसे दूर जाता देखता था
देर तलक

वो खुशबू
मुझे एहसास दिलाती है
कि मेरी
होमवर्क कॉपी की नाव
अब बड़ी हो गयी है
अब जहाज़ बन गयी है-
अब वो एक समुन्दर में
गोते लगाती है

वो खुशबू
मुझे मेरे घर की याद दिलाती है
वो खुशबू
मुझे मेरे आँगन की याद दिलाती है

देखो ना,
आज कितनी तेज़ बारिश हुई दिल्ली में!