ज़िन्दगी की उम्मीद

वो पेड़
ठीक से उगा भी नहीं
और मुरझा गया-
उसके पत्ते
अब भी
बारिश का इंतज़ार करते हैं

दो तीन सदियों पुराना
एक गुम्बद
उसके ठीक सामने खड़ा है,
कुछ बेजुबान बेंच
उसे घेर कर बैठे हैं,
बुझे हुए कुछ लैम्पपोस्ट
गड़े हैं ज़मीन में
उसके पास ही-
ये डराते हैं
ज़िन्दगी की हर उम्मीद को
वो पेड़
अपने साथ
जिंदगी की उम्मीद लेकर आया था
लेकिन
मौसम की बदमिज़ाजी ने
उसे मुरझा दिया

खामोश
वो अब भी बरसात का इंतज़ार करता है

उसके इर्द-गिर्द
दो-एक कवितायें घूमती हैं अक्सर
एक पन्ने पर उतरने की
कोशिश करती हैं

लेकिन
वो बेंच वो लैम्पपोस्ट वो गुम्बद-
सब के सब
उन्हें घेर कर
आत्महत्या करने पर मजबूर कर देते हैं

पर
वहाँ
हर रात
एक नयी कविता का जन्म होता है-
जिंदगी की उम्मीद के साथ

बड़ी मुश्किल से
एक कविता
बच कर
इस कागज पर उतरी है
इसे ज़िन्दगी से मोहब्बत है-
इसे ज़िन्दा रहने दो!

30.6.2012

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