वो वक़्त जिसका कि वादा था
तुम्हारी बातों में 
वो वक़्त जिसका कि ज़िक्र था 
तुम्हारी अज़ानों में 
वो वक़्त जिसके लिए लड़े थे 
वो वक़्त जिसके लिए मरे थे 
वो वक़्त जिसका था इंतज़ार 
"आएगी सुबह"- था ऐतबार 
ना आया वो वक़्त 
तुम आये, वो आये, ये आये 
ना आया वो वक़्त 
हम बैठे हैं किनारे 
थामे हाथ हम सारे 
कि धर दबोचेंगे 
कि पकड़ खाएंगे 
कि गोश्त बनाएंगे 
कि खा ही जायेंगे 
जिस्म जो भूखा 
जिस्म का भूखा 
दाँतों को लगा 
ख़ून का चस्का 
अँधेरी रात में जन्मे 
नंगे-अधनंगे 
लोमड़ी के बच्चे 
वक़्त को आने दो
वक़्त के साथ आने दो 
उसके साथ की उम्मीद 
के जिसका तंदूर बनाएंगे 
हम ही इंसान कहलायेंगे 
(ऐसे ही है)
(ऐसा ही है)
-13.11.2016