ज़मीन पर टूटे शीशे पड़े थे। रास्तों पर कोई चलता नहीं था। और एक वो जो दौड़ कर पार गया पागल था सबके लिए- और अपने लिए आदर्श।
मेरी कहानियों में मौजूद हैं अनगिनत पागल। मैं बचपन से पागलों के बहुत क़रीब रहा हूँ। और इन पागलों को अपना भी लगता हूँ। लेकिन मैं बॉर्डरलाइन पागल ही बना रहा। बहुत कोशिश भी की कि पूरा पागल बन जाऊँ। अब कोफ़्त होती है ऐसे लोगों से जो ख़ुद को पागल कहते हैं, यायावर कहते हैं। बहुत मुश्किल है साथी। सबकुछ खोने की शर्त है, और पाने को बस खुला आसमान।
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सफ़र मुश्किल है साथी
नहीं आसान यायावरी
खोने को सबकुछ है
और पाने को खुला आसमान
सफ़र मुश्किल है साथी
छोड़ना दुनियावी माया
और पाना शून्य
नहीं सबके बस की
कविता करना बिना मतलब
-कि जान लेना नहीं आएगी
कोई क्रांति
सब क्रांतिवीर फँसे हैं
आलू और प्याज़ ख़रीदने में
और जो बचा है
वो पागल कवि
छंद के आकार में फँसा है
सफ़र मुश्किल है साथी
लेकिन चलो चलते हैं
कि कुछ दूर ही है जूपिटर
- और वहाँ बैठे पागल
इंतज़ार कर रहे हैं।
8.8.2016
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