क्या-क्या खोया है, क्या-क्या पाना है
दुनिया के बाज़ार में अंदाज़ा लगाना है
उधार माँग कर मुस्कुराया था कभी
अब ज़िंदगी भर उधार चुकाना है
बचपन में एक अल्हड़पन था पास मेरे
खोयी अमानत से ज़िन्दगी चलाना है
खुदा-भगवान् कोई भी नहीं, जानता हूँ
खुद को खोकर फिर किसको पाना है
क्यूँ इकट्ठा करूँ कागज़-पत्थर तेरे लिए
जब एक दिन मुझे तुझमे ही समाना है
ऐ हवा! तू यूँ ख़ामोश ना रहा कर
तुझे धड़कनों का साथ निभाना है
मैं हूँ, नहीं हूँ, क्या पता- क्या खबर
झूठी है दुनिया, झूठा सारा ज़माना है
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