जुपिटर- 4

जियोग्राफी के
पहले
हिस्ट्री के
शुरुआत में-
एक पल था

उस पल में
क़ैद थे
मौन वक़्त के
सभी लम्हें,
बंद थे उसमे
इतिहास के बाद का
इतिहास,
भूगोल के पहले का
भूगोल
आदि भी
अंत भी
सच भी
झूठ भी
सफ़ेद भी
स्याह भी

और फिर
वो लम्हा
खो गया

मेरे दोस्त
साबू ने कहा है
मौजूद है
वो लम्हा
उसके घर के
पास वाले बगीचे में

-वो बगीचा
बुलाता है मुझको
बार-बार
जब भी सोता हूँ मैं,
आ जाता है
सपने में,
बेकार है सभी
नींद की गोली-
नींद उड़ जाती है
कभी-कभी
नींद में भी

अब ज़रूरी है
जाना वहाँ,
ज़रूरी है मिलना
उन सबसे,
ज़रूरी है
देखना सबकुछ,
ज़रूरी है
पाना उस
खो चुके पल को

कल सुबह की
पहली ट्रेन से
जाना है मुझको
उस पार,
जुपिटर पर।

-06.05.204

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