रे पागल आकाश,
रात भर छत पर मेरे क्यों सोता है तू?
तू भी आवारा
हम घुमक्करों सा लगता है
मैंने देखा है
तेरी विह्वलता को
रे आकाश
दिन भर सूरज की धूप में क्यों तपता है तू?
तेरी बातें सुनता हूँ मैं
छुप-छुप कर|
अच्छा,
ये बता कल क्या बातें कर रहा था तू बादल से?
मुझे सब पता है-
तुने साजिश की है
मेरे रूह तक को भिगो देने की अगली बारिश में|
रे आकाश,
तू सच में पागल है!
रात भर छत पर मेरे क्यों सोता है तू?
तू भी आवारा
हम घुमक्करों सा लगता है
मैंने देखा है
तेरी विह्वलता को
रे आकाश
दिन भर सूरज की धूप में क्यों तपता है तू?
तेरी बातें सुनता हूँ मैं
छुप-छुप कर|
अच्छा,
ये बता कल क्या बातें कर रहा था तू बादल से?
मुझे सब पता है-
तुने साजिश की है
मेरे रूह तक को भिगो देने की अगली बारिश में|
रे आकाश,
तू सच में पागल है!
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