कुछ ख़याल 4

यादों के सहारे दीवारें अब भी खड़ी हैं,
मकां तो कब के ढह चुके!

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बहुत देर देखने के बाद
ऐसा लगा मुझे 
वो खूंखार बहुत है जानवर 

बस नाम उसका किसी ने
आदमी रख दिया है!

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ना मैं अजीब हूँ, ना तुम अजीब हो
अजीब कुछ हालात थे,
बेहतर हम पहले ही थे
जब एक दूसरे से अनजान थे

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मैं इतना हसीं तो ना था

तेरी बाँहों का असर तो देख
मैं भी हसीं लगने लगा!

*

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