सभी स्मृतियों को मिटाता
एक रबर का टुकड़ा
मेरे पैर से लिपटा
चलता है मेरे साथ
कदम-दर-कदम
मिटते जाते हैं
सभी ग्लानिभाव
कदम-दर-कदम
जीवन कितना
आसान हो जाता है
स्मृतियों के बिना जीना
आसान होता है
बिल्कुल उस
निर्भीक जानवर की तरह
जिसे नहीं हुआ इल्हाम
समय के होने का
-समय के समझ
का ना होना ज़रूरी है
पैर से लिपटा
रबर का टुकड़ा
जानता है सबकुछ
-बन गया है मेरे
मौन का साथी।
-13.11.14
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें