एहसास हूँ, एहसास विहीन हूँ... स्वास हूँ, नि:स्वास हूँ...
ना जाने कैसे शौक इंसानों ने रखे हैं, एक अरसे से सभी मुस्कुराते रहे हैं
शहर की भीड़ में कहीं खो ना जाओ, इसलिए जंगलों में भी ठिकाने रखे हैं
हमें क्या पड़ी अब तुम्हे कुछ कहेंगे, जला दो, रिश्ते हैं, कब से रखे हैं
-11.04.2014
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