धरती की अजब कहानी
प्यासी पानी
बादल पागल
बरसे आग
भीगे इंसा
तन जले
मन तरसे
दौड़े सब
सब गिरे
सब मरे
पागल सब
सब पागल
देखो,
अलग सी है
दुनिया जुपिटर की-
ना कोई ऊपर
ना बैठा कोई नीचे
ना कोई गांधीवादी
ना मार्क्सवादी कोई खीजे
सब धर्म अधर्म हो गए
अधर्म सारे धर्म
खुदा हो गया नास्तिक
दुःख हो गए सारे ख़तम
गांधी पढ़ रहा दास कैपिटल
मार्क्स पढ़ रहा बाइबल
हिटलर भी अब ज्यूस हो गया
गुस्सा उसका कहीं खो गया
ये सब भी
तुम्हारी तरह
हँसते थे
बातों पर मेरी
जब मैं कहता
सब कुछ
अलग होगा
जुपिटर पर
रास्ता खुद
तुम्हें है करना तय
आना है चल कर
जुपिटर
जहाँ अलग सा
है अपना घर
पागल धरती
बोलेगी दौड़ो
-तुम दौड़ोगे
बोलेगी लड़ो
-तुम लड़ोगे
बोलेगी जियो
-तुम जियोगे
बोलेगी कूदो
-तुम कूदोगे
वीरान पहाड़ से,
और आ जाओगे
पास मेरे
पागल सब
सब पागल
पागलपन से परे
जब हम मिलेंगे
तब गायेंगे एक गाना
-गाना शब्दहीन
तुम आ जाना
मत घबराना
-घर मेरा है अब
जुपिटर।
22.04.2014
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें