कुछ ख़याल 6

दरमयान हमारे ये दूरी कैसी आ गयी,
कि अब मुलाक़ात 
सिर्फ ख़्वाबों में होती है!

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वो जो मुलाक़ात ज़िन्दगी से हुई
ज़िन्दगी कुछ हैरान सी रह गयी

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मंजिल की फ़िक्र तो वो करें
जिन्हें सफ़र से प्यार नहीं 

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हमें इख्तियार नहीं अपने आप पर
आप वक़्त की बातें करते हैं 
मैं खुद का भी नहीं हूँ
आप अपनी बातें करते हैं

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वक़्त ने बाँध रखा है ज़िन्दगी को
पता नहीं कितना जायज़ है ये 
जो हम बाँध दे कविता को वक़्त के बंधन में 
हरगिज़ नाजायज़ है ये

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हैं कहानियाँ बहुत हमारे पास
ये तेरा मेरा अफसाना है
हमें छोड़ दो इन गलियों में
कि तुम्हे घर भी जाना है

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ख़ामोशी

ख़ामोश ही रहने लगे आजकल
अपने घर में हम,
दीवारों को तो अब भी
आवाजें सुनने की आदत है

तुम आ जाओ तो कुछ बातें करें!

बुकमार्क

वो जो गुलाब का फूल
कभी दिया था तुमने,
उसकी खुशबू है 
अब तक मेरी जिंदगी में-
बुकमार्क बना रखा है उसे

तुम अब भी मेरे पास हो!

सिविलाइज़ेशन

क्यों बसा रखा है शहर?
बसे हुए से गाँव हैं,
बसे हुए से बस्ती क्यों कर?

जब हर गली कोई खड़ा है
उजाड़ने को घर?

मर्द

मुझे शर्म आती है
कि मैं मर्द हूँ
जब सुनता हूँ
एक मर्द ने
सरेशाम एक लड़की का
रेप किया...

रौंदता रहा वो उसको
सिर्फ इसलिए कि
वो मर्द था

कर तो अब भी कुछ नहीं पाता,
बेहतर होता
कि मैं औरत ही होता...

इस शर्म से तो बच जाता!

दोस्त

कभी कभार ऐसा होता है
कि बेतुकी बातें करता रहता हूँ तुमसे
सिर्फ इसलिए कि तुम्हारी आवाज़ सुनता रहूँ
एहसास होता रहे कि तुम मेरे पास हो...

महफूस रखना चाहता हूँ दोस्ती,
इसलिए झगड़ता भी हूँ
मनाता भी हूँ तुम्हें
इसी बहाने कुछ दूरियाँ मिट जाती हैं हमारी
कुछ और जान लेते हैं एक दुसरे को हम

यूँ तो कुछ बचा नहीं जानने को
बस काफी है जान लेना कि
इस मतलबी दुनिया में
एक दिल तो है
जिसके अन्दर मेरे लिए
एक एहसास है अब तक...

दोस्ती है अब तक!

बच्चे

रास्ते में मिल जाते हैं
कुछ नादाँ बच्चे
सुबह सुबह ऑफिस जाते वक़्त

बात हो जाती है उनसे कभी कभी
खुद की एक वोकेबोलरी है उनकी-
ता-तक-धत-ऊ-हा-हा-
ये बड़े पेचीदा शब्द हैं
उनकी दुनिया में
बहुत से भाव व्यक्त करते हैं वो
अपनी भाषा में!
बिना किसी सरहद-समाज के
पूरी दुनिया ये भाषा बोलती है!

तुम बड़े बेवकूफ थे जो दुनिया को
भाषा-समाज-सरहद के नाम पर बाँट दिया!

जिल्द

एक रोज़ मुलाक़ात की थी
ख्वाब में तुमसे

अलसाई रात में
बहुत देर साथ बैठे थे हम
उसी क्लास रूम में
एक बेंच पर
जहाँ कभी मिले थे पहली दफा,
टीचर के आने तक
बात भी किया
मेरे एक चुटकुले पर
हँसी भी थी तुम

अब उस ख्वाब को
महफूस कर लिया है-
जिल्द चढ़ा दी है उस पर!

एक गीत सुनाता हूँ!

गाता हूँ, गुनगुनाता हूँ
गीत तुमको सुनाता हूँ

लिख रही हैं कुछ तुम्हारी पलकें
संग इनके गीत एक बनाता हूँ

बहुत दिन से रो रही थी आँखें
अब तो मैं भी मुस्कुराता हूँ

जो ज़िन्दगी का दिया बुझने लगता है
मैं ख़ुद अपना दिल जलाता हूँ

रात कभी बेकार होती नहीं मेरी
मैं ख़्वाबों के तीर चलाता हूँ

जो ना हो तुम मेरे पास तो क्या हुआ
मैं अरमानों के दरवाज़े खटखटाता हूँ

चुप रहो, कुछ मत कहो-
"कुछ देर के लिए मैं बस एक सन्नाटा हूँ"

आतिश

तारों के दिए से
हमने अपना जहाँ सजा लिया
आकाश में देखी आतिश
और दिल को भी दिखा दिया
कुछ यादें ताज़ा कर ली बचपन की

चलो, ये दिवाली भी अच्छी रही!