जो मुझसे
बात करती थी
शून्य में
मौन में
जो कहती थी
कवितायेँ अनेक
जो जानती थी
सत्य मेरा
वो दीप-
रात में,
लाईटहाउस-
समुद्र किनारे
वो आवाज़
जो अन्दर कहीं
जन्मी थी-
जो पागल थी,
सनकी जैसी
समझदार,
जो अट्टहास
जैसी मुस्कान,
जो शांत थी
जो ज्ञान
सर्वव्यापी
वो आवाज़
अब चुप है
-ख़ामोश
एक सदी के लिए।
(7.11.13)
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