तुमसे कुछ कहना था

तुम्हे ख़बर भी ना कर सका,
कि तुम्हारी हर मुस्कान के पीछे
दुआ मेरी थी

तुम्हे ख़बर भी ना कर सका
कि हर लम्हात जो ख़ुशी
का एहसास हुआ था तुम्हे
वो खुदा ने मंज़ूर
की थी दुआ में मेरी

तुम्हे ख़बर भी ना कर सका,
कि मैं लम्हा लम्हा
तुम्हारे पास ही था-
शाम की ठंडी पुरवाई में
जब तुम्हारे गालों को
हवा हौले से छू कर निकल जाती थी,
तब तुम आँखों को मीच लेते थे
जब तुम मुस्कुराते थे
नयी फिल्मों के गीत गुनगुनाते थे
सुबह उठ कर फिर से सो जाते थे
जब थक जाते थे
और नींद आ जाती थी तुरंत
गिरते ही पलंग पर...

उस नींद में सपने
मैं ही तो दिखाता था

कभी तो देखा होगा,

कभी तो महसूस किया होगा...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें