एक पल

ज़िन्दगी के उफ़ान भरे रास्तों और ढलानों से 
गुज़रते उम्र के हर पन्ने को 
उड़लते-पलटते देखने की ख्वाहिश 
मेरे दिल में फिर से मचल रही है 

हवा के साथ गुज़रते ,
गालों को सहलाते 
वक़्त के तेज़ कदम
फिर से मेरे साथ 
दो पल के लिए रुके हैं 

अब,
जब नादाँ दस्तक हौले से 
मेरे घर के दरीचे पर आई 
तब सिर्फ दरवाज़ा नहीं खुला,
खुला नए सवेरे का रास्ता 
जो होकर गुज़रा पुराने यादों के साए से

कौंधते हुए अचानक से 
दिल पर दस्तक दे गए कई पुराने साथी,
कुछ पुरानी ख्वाहिशें फिर से जिंदा हो गयीं|

कुछ ख़याल 4

यादों के सहारे दीवारें अब भी खड़ी हैं,
मकां तो कब के ढह चुके!

*

बहुत देर देखने के बाद
ऐसा लगा मुझे 
वो खूंखार बहुत है जानवर 

बस नाम उसका किसी ने
आदमी रख दिया है!

*

ना मैं अजीब हूँ, ना तुम अजीब हो
अजीब कुछ हालात थे,
बेहतर हम पहले ही थे
जब एक दूसरे से अनजान थे

*

मैं इतना हसीं तो ना था

तेरी बाँहों का असर तो देख
मैं भी हसीं लगने लगा!

*

आँखों पर...

अगर खेलना आता तो मैं भी खेल लेता उसके साथ
नादाँ खिलाड़ी हूँ,
बस वो खेलता रहता है मुझसे,मेरी आँखों से...

मेरे आँसू बहुत बदमाश हैं!

*

झाँकती है वो आँखों के झरोखों से
देखती है, बातें करती है

उसकी आँखें जिंदा इंसान हैं! 

*

सर्द बहुत हैं रातें
बर्फ सी जम गयी है पलकों पर

इन आसुओं को अब पिघला भी दो!

*

ख़ामोश निगाहें बहुत बोलती हैं,
बिलखती रहती हैं हर शब्...

इनका कोई दोस्त भी नहीं!

कुछ ख़याल 3

ना सुना, ना देखा, पर लोग कहते हैं,
भगवान् बोलते हैं तो आवाज़ गूँजती है 

हर रोज़ खुदा बनता हूँ मैं खाली कमरे में!

*

एक परत चादर की उठा दो,
आज बेलिहाफ कर दो दुनिया

हम भी देखें दुनिया कैसी है!

*

कुछ देर तक वो भी चुप था,
मैं भी ख़ामोश रहा पल भर

फिर हमने एक दूसरे को दोस्त कह दिया!

*

शाख से लटकते पत्ते को टूटते देखा,
फिर किसी की पहचान मिटते देखा 

या नयी पहचान बना रहा है कोई!

*

दो पल ठहरने दो,
साँस भी लेने दो इसे 

ज़िन्दगी है, बहुत लम्बा सफ़र है इसका

*

एहसान

अजीब सा लगने लगा मुझे अब तो,
के बड़ी तंगदिल सी हैं राहें
इन मजहबों की

मुझे नास्तिक बना कर
बड़ा एहसान किया
तेरे भगवान् ने!

बुज़ुर्ग

उस इन्सान की शक्ल पर हैं
झुर्रियाँ कई सारी
वो इंसान तारीख़ की जिंदा किताब है...

हर ज़ख्म सियासत का दर्ज है
उसकी भवों के ऊपर-
माथे पर कहीं

आँखों के नीचे गाल पर
गहरा सा अँधा कुआँ है,
ख़ुदकुशी की थी १९१९ में
कई लोगों ने यहाँ-
बाग़ है जलियाँवाला का ये!

झुर्रियाँ कई सारी हैं
उस इन्सान की शक्ल पर!

गुफ़्तगु

ज़िन्दगी बड़ी अजीब सी
लगने लगी है
ऐसा तो पहले होता ना था,
कुछ किताबें
इसने भी पढ़ ली होगी

आजकल
सवाल बहुत करती है...

तुम्हारा काम

दिक्कत इस बात से नहीं
कि तुम मारते हो दंगों में,
वो तुम्हारा काम है...
तुम करोगे ही,
मारोगे ही, मरोगे ही,
किसी को बेवा करोगे,
किसी को अनाथ बनाओगे
छीनोगे किसी का वालिद...
धर्म सिखाता ही यही है

दिक्कत इस बात से है,
उसे क्यों कर मारा तुमने
जो जानता भी नहीं-
मरना क्या होता है!

मुलाक़ात

मैं तन्हा महसूस करता हूँ
बच्चे की तरह डरने लगता हूँ

महसूस करता हूँ तुम्हारी कमी
और एक चाहत सी जगती है
तुमसे मिलने की...

और ना जाने कहाँ से
पलक झपकते ही
तुम आ जाते हो मेरा
हाथ थामने...
...इस वीरान अँधेरी रात में!

सर्दी

इतना आसान तो नहीं होता
सिहरती रात में जागना,
ठंड से लड़ना मुश्किल होता है

जब फैलती है रात
तो जिस्म सिकुड़ता जाता है

बस
जला लेता हूँ पुरानी यादों को
और उस अलाव को
सेंकता रहता हूँ रात भर
जगा रहता हूँ रात भर